प्राचीन समय से मनाया जा रहा है यह पावन त्योहार


भाई-बहन के अटूट प्रेम का त्योहार रक्षाबंधन श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षाबंधन सावन का आखिरी दिन होता है, इसी कारण इसे श्रावणी या सलूनो भी कहा जाता है। प्राचीन समय से मनाए जा रहे इस त्योहार को लेकर कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।


माना जाता है कि मां लक्ष्मी ने पाताल लोक के राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था और यह दिन श्रावण माह की पूर्णिमा का था। भगवान श्रीकृष्ण ने जब शिशुपाल का सुदर्शन चक्र से वध कर दिया तब भगवान की अंगुली सुदर्शन चक्र से कट गई। द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनकी अंगुली पर बांधा। यह दिन श्रावण माह की पूर्णिमा था और तभी से यह त्योहार मनाया जाता है। सिकंदर की पत्नी ने पोरस को राखी भेजी थी। पोरस ने राखी का मान रखा और युद्ध में सिकंदर पर वार नहीं किया और उसे छोड़ दिया। यह भी माना जाता है कि प्राचीन समय में ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी।
रक्षाबंधन पर बहनें, भाई को राखी बांधकर उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं। भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं और रक्षा का वचन देते हैं। इस त्योहार पर कई जगह वृक्ष और भगवान को भी राखी बांधने की परंपरा है। बाबा अमरनाथ की धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा को शुरू होती है और रक्षाबंधन के दिन पूर्ण होती है। रक्षाबंधन का त्योहार गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक भी माना जाता है।


इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।