महाभारत युद्ध से जीवित बचे अश्वत्थामा,कृपाचार्य और कृतवर्मा का जीवन कैसा रहा ?


महाभारत के युद्ध में कौरव पक्ष के तीन योद्धा जीवित बचे थे।


1- अश्वस्थामा 2- कृपाचार्य 3- कृतवर्मा


संभवतः प्रश्न का आशय युद्ध के उपरांत जीवित बचे रहने के बाद के जीवन के बारे में है। पहले कृतवर्मा पर चर्चा कर लेते । कृतवर्मा यादव वीर थे जो महाभारत के युद्ध में कौरवों के तरफ से लड़े थे, और जीवित बचे थे। महाभारत मौसल पर्व में ,प्रभास क्षेत्र में यादवों के परस्पर कलह में ये सात्यकि द्वारा मारे गये। महाभारत मौसल पर्व -अध्याय 3-श्लोक 28


इत्येवमुक्त्वा खङ्गेन केशवस्य समीपतः।


अभिद्रुत्य शिरः क्रुद्धश्चिच्छेद कृतवर्मणः।।


ऐसा कहकर कुपित हुए सात्यकि ने श्रीकृष्ण के पास से दौड़ कर कृतवर्मा का सिर काट लिया।


अब रहे कृपाचार्य और अश्वथामा जो मामा भांजे थे।


कृपाचार्य महाभारत युद्ध के उपरांत पांडवों के साथ आश्रित होकर रहे एवम अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को अस्त्र शस्त्र सिखाया।


अश्वत्थामा- इनके बारे में यह विदित है कि द्रोपदी के पांचों पुत्रों का सोते समय हत्या किया था। द्रोपदी द्वारा जीवनदान देने के उपरांत कृष्ण ने इनके माथे से मणि निकाल लिया था, जहाँ पर घाव हो गया था जो कभी नहीं पूजता और इसी घाव को लेकर अब तक ये अमर हैं। यहाँ इस बात का उल्लेख करना यथार्थ समझता हूँ कि हमारे यहाँ सात चिर जीवित हैं जिनमें कृपाचार्य और अश्वथामा भी हैं।


श्लोक-


अश्वथामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण: ।


कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः ।।


अश्वथामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्यऔर पराशुराम ये सातो चिरजीवी हैँ।


यहाँ इन सातों चिरजोवियों के जीवन गाथा का वर्णन करना नहीं वरन उनके जीवित होने के कारणों पर चर्चा किया जाय तो अच्छा। इस विषय के मीमांशा पर मतांतर हो सकता है परंतु यह उल्लेख करना आवश्यक है।क्योंकि प्रश्न विचारणीय है। क्रमशः।


अश्वथामा- प्रतिशोध, हिंसा, वीभत्सता, घृणा, षड्यंत्र, निर्लज्जता, अविवेक, भयहीनता का जीवंत उदाहरण है। ऐसे आचरण के लोग हमेशा से हर युग और समाज में विद्यमान हैं। अश्वथामा इस आचरण का संवाहक है, अतः अमर है।


कृपाचार्य- वह जो दूसरों के दया पर जीवन यापन करे। उदर पूर्ति ही जिनका जीवन लक्ष्य हो । जो जीवन निर्वहन में सहायक होता है उसी के साथ होते है।ऐसे प्राणी हमेशा से हैं इसलिये ये अमर हैं।


परशुराम- क्रोध,वैर,जुनून की हद तक प्रतिहिंसा का साकार। जिसने अपनी समस्त शक्तियों का उपयोग एक व्यक्ति सहस्र अर्जुन से बदला लेने तक संतुष्ट नहीं हुआ बल्कि उस जाति के निःपराध लोगों की हत्या की। ऐसे आचरण के लोग ऐसा नहीं है कि किसी समय में न रहे हों। परशुराम व्यक्तित्व कभी नहीं मरता अतः अमर है।


बलि- प्रह्लाद के पौत्र, विरोचन के पुत्र , धर्मशील नीति निपुण होने के पर भी, छले गये। हर युग ,हर समाज में ऐसे लोग हैं जो चालाक के चंगुल में फंसते हैं और अपना सब कुछ गवां बैठते हैं। बलि स्वरूप ऐसे लोग कब नही हैं,अतः बलि अमर है।


विभीषण- मीठी वाणी बोलने वाला, वाणी द्वारा भेद बताने वाला । स्व हित निरत। वाणी द्वारा जितने भी संशाधन वृत्तियां हो उससे जीविकोपार्जन करने वाला हर युग- काल में हैं, अतएव विभीषण ( सुकंठ ) कब सर्व काल में है अतः अमर है।


हनुमान- ज्ञानी, गुणवान, बलवान, सेवा सावधान , अपने स्वामी ( व्यक्ति, राष्ट्र, या वर्ग ) के प्रति कर्तव्यनिष्ट और समर्पित व्यक्ति से ही सामाजिक, राष्ट्रीय, या जातीय ( विशेष जाति नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज ) सरंचना है और ऐसे आचरण के व्यक्तित्व की सर्वदा अपेक्षा रहती है,ऐसे में हनुमान कैसे मर सकते हैं।


व्यास- ज्ञानी, विज्ञानी, सर्वद्रष्टा, जीवन मुक्ति दर्शन का प्रणेता, परंपरा का संवाहक , मानव जीवन के कारण और लक्ष्य को बताने वाला, मुक्त और मुक्ति पथ प्रदर्शक सर्वदा विद्यमान हैं। जो समय ,स्थान के सीमा में बद्ध न होकर सर्वकालिक विद्यमान हैं और अमर हैं।


अगर हम सूक्ष्म विचार करें तो ये सातों व्यंजनाओं को प्रकट करने वाले कारण स्वरूप हैं।


हमारे शरीर मे ये सातों विद्यमान हैं जो जन्म और मुक्ति के संवाहक हैं। इन पर उत्तरोत्तर विजय पाना ही जीवन और मुक्ति को पाना है। इसको ध्यान साधना में क्रमिक उन्नति ही कुंडलिनी जगाना है। गुण विशेष के साथ शरीर में इनके स्थान नियत हैं जो कि--


1-मूलाधार चक्र मेरुदंड के मूल में, सबसे नीचे। यहाँ अश्वथामा का वास है।घृणित भी है और जन्म का कारक भी। यह पहला चक्र है जिसपर साधक को विजय पाना होता है।


2-स्वाधिष्ठान चक्र- यह स्थान कृपा चार्य का है। क्षुधा पर विजय पाने मात्र से ही प्रसन्नता, निष्ठा आत्मविश्वास और ऊर्जा का स्वयमेव प्रादुर्भाव होता है।


3-मणिपुर चक्र- इस स्थान पर परशुराम का वास है जिस पर विजय पाने पर आत्म विश्वास,आत्म खुशी, विचारों की स्पष्टता, ज्ञान ,बुध्दि और योग्य निर्णय लेने की क्षमता का प्रादुर्भाव होता है।अतः परशुराम आचारण पर विजय पाना होता है।


4-अनाहत चक्र- यह हृदय के पास होता है और यह भावना, अनुराग पर विजय पाना होता है यहाँ पर बलि का वास है जिसने प्रेम और भावना में अपना सब भौतिक गवां बैठा। अतः साधक को उपरोक्त वृत्तियों पर विजय पाना होता है ।वे इससे मुक्त होते हैं।


5-विशुद्धि चक्र- यह कंठ स्थान है जहां विभीषण का वास है। इसपर विजय पाने वाला स्वयं को पहचानने लगता है ।


6-आज्ञा चक्र - मेरुदण्ड की समाप्ति पर भ्रूमध्य के पीछे।यहाँ पर हनुमान का स्थान है जो मानरहित,बुद्धि का केंद्र,संवेदनशीलता,बौद्धिक सिद्धि तथा सर्वोच्च चेतना का प्रदाता। यहां स्वयं चेतना के अतिरिक्त परमात्मा का बोध होता है।


7-सहस्त्रार चक्र - यहां व्यास का वास है।जिसपर विजय पाने वाला जन्म मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेने वाला विज्ञानी होता है।


इस तरह हम देखते हैं कि जब तक ये सातों जीवित हैं हमें अनंत जीवन की यात्रा करना है और यदि मुक्त भी होना है तो इन्ही पर विजय और इनकी सहायता द्वारा।


हम देखते हैं कि विषय वस्तु तो दो पात्रों का ही था लेकिन औरों का प्रकरण समीचीन हो गया था।