जन्माष्टमी पर कान्हा को जरूर लगाएं धनिए की पंजीरी का भोग


हर साल भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह अष्टमी तिथि 11 अगस्त सुबह 09:06 बजे से शुरू होकर 12 अगस्त सुबह 11:16 बजे समाप्त हो रही है। यानी अष्टमी तिथि मंगलवार की सुबह से बुधवार 11 बजे तक है। जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण को 56 भोग का प्रसाद लगाने का विधान है। लेकिन इनमें सबसे खास है धनिए की पंजीरी का भोग। माना जाता है कि कान्हा को प्रसाद में धनिए की पंजीरी सबसे अधिक प्रिय है। कृष्ण जन्माष्टमी पर धनिया पंजीरी के बिना प्रसाद अधूरा माना जाता है। धनिया पंजीरी को जन्माष्टमी के अवसर पर फलाहार के रूप में व्रत खोलने के लिए बनाया जाता है। यह पंजीरी खाने में जितनी स्वादिष्ट होती है, बनाने में उतनी ही आसान है। तो देर किस बात की आइए जानते हैं कैसे बनाई जाती है यह स्वादिष्ट पंजीरी। 


धनिए की पंजीरी बनाने के पीछे धार्मिक मान्यता-
जन्माष्टमी पर धनिए की पंजीरी बनाने के पीछे ऐसी मान्यता है की कान्हा जी को माखन-मिश्री बहुत पसंद था। माखन-मिश्री का अधिक सेवन कान्हा को किसी तरह की हानि न पहुंचाएं इसके लिए मां यशोदा उन्हें प्रसाद में धनिए की पंजीरी बनाकर खिलाती थीं। तभी से जन्माष्टमी के दिन धनिए की पंजीरी का भोग जन्माष्टमी पर कान्हा को लगाने की परंपरा शुरू हो गई। आयुर्वेद में भी धनिया की पंजीरी का सेवन करने के कई फायदे बताए गए हैं। धनिए की पंजीरी त्रिदोष यानी वात, पित्त कफ के दोषों से बचाने का काम करती है।


धनिए की पंजीरी बनाने का तरीका-
धनिया की पंजीरी बनाने के लिए कढ़ाई में 1 चम्मच घी गर्म कर इसमें धनिया पाउडर डालें। इसे अच्छी तरह से भूनें और इसके बाद इसमें कटे हुए मखाने डाल दें। आप चाहें तो को मखाने को दरदरा पीस कर भी धनिया पाउडर में डाल सकते हैं। अब इसमें काजू और बादाम के छोटे-छोटे टुकड़े डालकर मिला दें। धनिया की पंजीरी बनाने के बाद कान्हा जी को भोग लगाकर उसे प्रसाद के रूप में घर में मौजूद लोगों को भी बांट दें।