ब्रज भूमि के कण-कण में बसे हैं श्रीराधा-कृष्ण


ब्रज भूमि श्रीराधा-कृष्ण की लीला भूमि है। यह चौरासी कोस की परिधि में फैली हुई है। माना जाता है कि श्रीराधा-कृष्ण ब्रज में आज भी विराजते हैं। इस भूमि का कण-कण श्रीराधा-कृष्ण की पावन लीलाओं का साक्षी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान श्रीकृष्ण से माता यशोदा और नंदबाबा ने कहा कि हमें सभी तीर्थ के दर्शन करने हैं। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने सभी तीर्थों का आह्वान कर उन्हें ब्रज में बुला लिया। मां यशोदा एवं नंदबाबा ने उनकी परिक्रमा की तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा का आरंभ माना जाता है।


यह सभी तीर्थ 84 कोस के दायरे में हैं। यह यात्रा भाद्रपद माह से शुरू होती है और कार्तिक पूर्णिमा तक चलती है। इस पावन यात्रा में करीब 1300 गांव आते हैं। यात्रा मार्ग में 12 वन, 24 उपवन, चार कुंज, चार निकुंज, चार वनखंडी, चार ओखर, चार पोखर, 365 कुंड, चार सरोवर, दस कूप, चार बावरी ,चार तट, चार वट वृक्ष ,पांच पहाड़, चार झूला, 33 स्थल रासलीला के हैं। इस यात्रा में शामिल होने वालों को प्रतिदिन 36 नियमों का पालन करना होता है। मान्यता है कि 84 कोस की परिक्रमा पूरी करने से 84 लाख योनियों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस यात्रा के एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस यात्रा में केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन होते हैं तो गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन होते हैं। ऐसा माना गया है कि ब्रज धाम की परिक्रमा सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा जी ने की थी।


इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।