अयोध्या । श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के 200 फीट नीचे जो टाइम कैप्सूल संरक्षित किया जाएगा, वह ताम्रपत्र पर निर्मित होगा। यह फैसला श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की गत 18 जुलाई को यहां संपन्न बैठक में लिया गया था। इस ताम्रलेख में मंदिर का संक्षिप्त इतिहास, शिलान्यास की तिथि, भूमिपूजन करने वाले मुख्य अतिथि, उपस्थित अन्य कतिपय विशिष्टजनों का नाम, निर्माण की शैली व वास्तुविद् का नाम अंकित रहेगा।
श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने बताया कि सैकड़ों साल इस बात को प्रमाणित करने में लग गए कि अयोध्या में राम मंदिर ही था। अब, जबकि खोदाई समेत तमाम प्रमाणों के आधार पर देश की सर्वोच्च अदालत फैसला सुना चुकी है तो नए सिरे से दस्तावेजों में युगों तक मंदिर का इतिहास सुरक्षित रखने और विवाद से बचने की कवायद है। ताम्रलेख तैयार करने की जिम्मेदारी दिल्ली की एक कंपनी को सौंपी गई है। इसी बीच यह जानकारी भी सामने आई है कि सन् 1889 में जब गर्भगृह के सामने राममंदिर का शिलान्यास हुआ था, उस वक्त भी एक ताम्रलेख भूमि के नीचे दबाया गया था। रामलला के निकटतम मित्र त्रिलोकीनाथ पांडेय बताते हैं कि उस वक्त ताम्रलेख मंदिर आंदोलन की अगुवाई कर रहे विहिप महासचिव अशोक सिंघल ने अपनी देखरेख में तैयार कराया था।
पांडेय बताते हैं कि राम मंदिर तो सैकड़ों करोड़ हिंदुओं की आस्था से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसकी ऐतिहासिकता प्रमाणित करने के लिए इस तरह का उपाय सुनिश्चित किया जाना तो आवश्यक है। इन ताम्रलेखों की सबसे बड़ी भूमिका भविष्य में संबंधित भवन के संबंध में उपजने वाले किसी विवाद में निर्णय से जुड़ी होती है। इसे आमतौर पर तांबा से इसलिए बनाया जाता है क्योंकि यह धातु जंकरोधी होती है। मिट्टी में भी हजारों साल सुरक्षित रहती है।
मंदिर के इतिहास को संदियों तक बताता रहेगा टाइम कैप्सूल
पुरातत्वविद व हेरिटेज कंजर्वेशनिस्ट विपुल बी.वार्ष्णेय बताती हैं कि यह कोई नया काम नहीं है। इतिहास पूर्व (प्री हिस्टोरिक) काल से टाइम कैप्सूल या ताम्रपत्र तमाम ऐतिहासिक धरोहरों की पहचान के लिए उपयोग में लाया जाता रहा है। सम्राट अशोक ने जो भी शिलालेख बनवाए, आज हजारों साल बाद भी पूरी जानकारी के साथ महफूज हैं। मध्यप्रदेश में भीम बेटका चलचित्र पुरा पाषाण काल से मध्य पाषाण काल के समय के माने जाते हैं। ऐसे में इतिहास को हजारों साल तक सुरक्षित रखना कोई नया नहीं।
विपुल बताती हैं कि पत्थर पर खोदाई सबसे सुरक्षित मानी जाती है क्योंकि इसे आसानी से पुराविज्ञान में डेट किया जा सकता है। मौसम व जलवायु का भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। वैसे आज हम टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुके हैं और कंप्यूटर चिप किसी इतिहास को महफूज रखने का एक बेहतर विकल्प है। इसमें भी सारा डाटा वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। वह कहती हैं कि कंप्यूटर चिप को हार्ड ग्रेनाइट पत्थर के बॉक्स में सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके लिए अष्टधातु का भी प्रयोग कर सकते हैं।
आधुनिक काल में सबसे पहले 1937 में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक इमारत के निर्माण के दौरान जमीन के अंदर टाइम कैप्सूल रखा गया। आर्किटेक्ट अनुपम मित्तल बताते हैं कि वास्तुकला की पढ़ाई में इनका इतिहास प्रमुख विषय है। इसमें टाइम कैप्सूल के बारे में विस्तार से बताया गया है। ये हवाई जहाज हादसे के बाद मिलने वाले ब्लैक बॉक्स की तरह हैं।
अष्टधातु कंटेनर और स्पेस शिप मेटेरियल से भी बनते टाइम कैप्सूल
अनुपम बताते हैं कि टाइम कैप्सूल वैसे तो शिलालेख होते हैं, जिनके खराब होने का खतरा कम होता है। फिर भी इनको कंटेनर के भीतर रखा जाता है। ये आयताकार कंटेनर होते हैं। कई बार कैप्सूलनुमा भी हो सकते हैं। जरूरी हैँ कि कंटेनर में वैक्यूम हो। यानी इसमें हवा न आ सके। धातु के संबंध में महरौली का लौह स्तंभ की अष्टधातु इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है जिस पर पर जंक नहीं लगता है। ऐसी ही धातुओं का उपयोग किया जाता है। स्टेनलेस स्टील भी एक विकल्प होता है। कंटेनर के भीतर शिलालेख को रख कर जमीन के भीतर जहां भी गाड़ा जाता है, वहां सतह पर एक नोटिस लगाया जाता है कि कितने साल बाद इस टाइम कैप्सूल को वापस जमीन से निकाला जाएगा।
कैप्सूल का इतिहास पांच हजार साल पुराना
गिलिकेश के महाकाव्य को बहुत पुरानी साहित्यिक कृति माना जाता है। यहां भी शुरुआत में ही जानकारी दी गई है कि उरुक की महान दीवारों की आधारशिला में स्थित तांबे के एक बॉक्स को रखा गया था। विज्ञान मानता है कि टाइम कैप्सूल का विचार 5,000 साल से अधिक पुराना है।