शव से कोरोना संक्रमण का खतरा नहीं


लखनऊ । देश-दुनिया में कोरोना संक्रमण से मरने वालों के शवों के साथ किया जाने वाला अमानवीय व्यवहार बेहद दुखद है। शवों को उनके परिजनों को देना तो दूर देखने की भी अनुमति नहीं। वहीं, कई परिवार संक्रमण के भय के चलते अपनों के शव को अंतिम श्रद्धांजलि तक देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। खौफ के चलते हेल्थ वर्कर्स शवों को गड्ढों में फेंके दे रहे हैं। तो वहीं परिवारीजन ही शव छोड़कर भाग रहे हैं। शायद ही किसी ने सोचा हो कि अंतिम संस्कार में उसके अपने ही परिजन शामिल होने से कतराएंगे। यह स्थिति बेहद अमानवीय व दुखद है। 


बड़ा सवाल यह है कि क्या शव से संक्रमण हो सकता है? दरअसल इस संबंध में जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोई गाइडलाइन नहीं बनाई है। वहीं, भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन भी स्पष्ट नहीं है। जिसके चलते पेंडेमिक में भारत ही नहीं पूरी दुनिया में शवों का अनादर हो रहा है।


इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रेडिशनल मेडिसिन के निदेशक और देश के जाने-माने वायरोलॉजिस्ट डॉ.देब प्रसाद चट्टोपाध्याय की मानें तो शव से संक्रमण की कोई संभावना नहीं। वह कहते हैं कि मृत्योपरांत चार से छह घंटे में शरीर की कोशिकाएं मृत हो जाती हैं। वहीं, कोरोना का संक्रमण छींकने व खांसने पर वायरस के ट्रांसमिट होने से होता है। यही वजह है कि शव से संक्रमण की कोई गुंजाइश नहीं। 


वह कहते हैं कि यदि एहतियात के साथ बॉडी को रखा व हैंडल किया जाए तो शवों का अंतिम संस्कार धर्मानुसार विधि-विधान से किया जा सकता है। शव को अस्पताल से भी संक्रमित कर बैग में इस शर्त के साथ दिया जाए की परिवारी जन उसको बगैर खोलें अंतिम संस्कार करेंगे तो संक्रमण की कोई गुंजाइश नहीं रह जाएगी।  सम्मान के साथ अंतिम संस्कार मरने वाले का अधिकार भी है।


अब भी देर नहीं हुई है। जरूरत इस बात की है कि दाहसंस्कार के लिए गाइडलाइन अविलंब जारी की जाए, क्योंकि लोगों की भावनाएं आहत हो रही है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी इस पर अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुका है।