संक्रमितों के साथ रहने वाले लोगों में बन जाता रक्षा कवच


कोरोना मरीजों के साथ रहने वाले लोग इस महामारी से बच सकते हैं। फ्रांस के वैज्ञानिकों ने लंबे अध्ययन के बाद यह दावा किया है। उनका कहना है कि एक घर में किसी के कोरोना पॉजिटिव होने के बाद वहां के तीन चौथाई सदस्यों के शरीर में साइलेंट इम्युनिटी (रक्षा कवच) विकसित हो जाती है। इससे अगर कहीं वे संक्रमण की चपेट में आ गए तो शरीर में पैदा हुई इस इम्युनिटी की वजह से वह खुद-ब-खुद ठीक भी हो जाएंगे।


फ्रांस के स्ट्रासबर्ग यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के शोधकर्ता इसे साइलेंट इम्युनिटी इसलिए कह रहे हैं क्योंकि खून की एंटीबॉडी जांच से यह पता नहीं लगता कि कोविड-19 के खिलाफ शरीर में प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) विकसित हो चुकी है। आमतौर पर माना जाता है कि अगर कोरोना वायरस के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी बन रही है तो आप जल्द इस महामारी से उबर सकते हैं।  


दुनिया में अनुमान से बहुत अधिक संक्रमण
एंटीबॉडी जांच के आधार पर वैज्ञानिक मानते हैं कि दुनिया की दस प्रतिशत आबादी में कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित हो चुकी है। यानी इतने लोग कोरोना वायरस के हल्के लक्षणों से संक्रमित होकर खुद ही ठीक हो गए। मगर हालिया शोध के हिसाब से दुनिया में संक्रमित हो चुके लोगों की संख्या अनुमान से ज्यादा हो सकती है क्योंकि इनमें साइलेंट इम्युनिटी विकसित हो चुकी है। पर इसका पता एंटीबॉडी टेस्ट से नहीं लगता।
  
फ्रांस में सात परिवारों की इम्युनिटी ने चौंकाया
शोधकर्ताओं ने कोरोना संक्रमित एक परिवार के सात लोगों में विशेष तरह की एंटीबॉडी का पता लगाया जो कि चौंकाने वाला था। इन परिवारों के आठ में से छह सदस्यों यानी एक चौथाई सदस्यों का एंटीबॉडी टेस्ट निगेटिव निकला। जिससे वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि ये संक्रमित नहीं हुए।


पर जब इन सदस्यों के बोन मैरो में टी-कोशिकाओं की जांच की गई तो कोरोना की एंटीबॉडीज मिलीं। यानी इनके शरीर में साइलेंट इम्युनिटी विकसित हो चुकी थी। जिसका मतलब है कि पूर्व में ये सभी कोरोना वायरस के हल्के लक्षण वाले संक्रमण की जद में आए पर ठीक हो गए।


वायरस से लड़ने का हथियार टी-सेल
जब शरीर के इम्युनिटी सिस्टम को वायरस से लड़ने के लिए अतिरिक्त सहायता की जरूरत होती है तब रक्त की श्वेत कणिकाओं से टी-सेल निकलकर बोनमैरो में पहुंचते हैं। इस तरह यह वायरस से लड़ने के लिए शरीर का प्रमुख हथियार हैं।


शोधकर्ता प्रोफेसर समीरा फाफी-क्रेमर का कहना है कि छोटे समूह पर किए गए इस शोध के जरिए संकेत मिलते हैं कि एंटीबॉडी जांच में टी-कोशिका को भी शामिल करने की जरूरत है ताकि संक्रमण की सही स्थिति तक पहुंचा जा सके।