आस्था और उल्लास का पर्व हरियाली तीज


सावन माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आस्था और उल्लास का पर्व हरियाली तीज मनाया जाता है। भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले इस त्योहार में महिलाएं सोलह शृंगार करती हैं। सोलह श्रृंगार अखंड सौभाग्य की निशानी है और इसका विशेष महत्व है।


फूलों से शृंगार करना शुभ माना जाता है। हरियाली तीज पर मेहंदी लगाने की परंपरा है। मेहंदी शरीर को शीतलता प्रदान करती है और त्वचा संबंधी रोग दूर करती है। माथे पर सिंदूर का टीका लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। मंगल सूत्र पहनने से नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह रुक जाता है। गले में स्वर्ण आभूषण पहनने से हृदय संबंधी रोग नहीं होते हैं। हाथों में कंगन या चूड़ियां पहनने से रक्त संचार ठीक रहता है। चांदी की पायल पहनने से पैरों की हड्डियों में मजबूती आती है। कान में आभूषण पहनने से मानसिक तनाव नहीं होता है। कर्ण छेदन से आंखों की रोशनी बढ़ती है। हरियाली तीज पर भगवान शिव को पीला वस्‍त्र और मां पार्वती को लाल वस्‍त्र अर्प‍ित करें। मां को अर्पित किए गए सिंदूर को ही लगाएं। हरियाली तीज पर व्रत कथा सुनना जरूरी होता है। तीज का नियम है कि क्रोध को मन में न आने दें। हरियाली तीज पर शाम के समय पीपल के पेड़ के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इस दिन कन्याओं को कुछ न कुछ दान अवश्य करें और भोजन कराएं। इस दिन हरे रंग की चूड़ियां और हरे रंग के वस्त्र धारण करें। यह बहुत शुभ माना जाता है।


इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।