स्वस्थ व्यक्तियों को संक्रमित कर कुछ महीनों में तैयार होगा टीका


कोरोना के टीके को लेकर दुनिया में छटपटाहट तेज होती जा रही है। यही वजह है कि अमेरिकी शोधकर्ताओं ने स्वस्थ व्यक्तियों को संक्रमित कर कुछ माह में टीका तैयार करने की विवादित पद्धति चैलेंज ट्रॉयल के इस्तेमाल का फैसला किया है। 


इस पद्धति में स्वस्थ व्यक्तियों को कोरोना के संपर्क में लाया जाएगा, ताकि तेजी से पता चल सके कि संक्रमण के शुरुआती दौर में वायरस कहां और कैसे हमला करता है और ठीक उसी वक्त दी गई वैक्सीन यानी टीका क्या असर दिखाता है। 


अमूमन ऐसा ट्रायल किसी उभरती बीमारी की बजाय कई साल जानलेवा हमला करने वाले वायरस पर किया जाता है, जिसकी ज्यादा जानकारी वैज्ञानिकों के पास हो और इलाज में भी कुछ कामयाबी मिल चुकी हो। अमेरिकी सांसदों ने कोविड-19 के लिए इस पद्धति के समर्थन में मुहिम छेड़ी थी और हजारों लोगों ने जिंदगी को खतरे के बावजूद इस परीक्षण के लिए हामी भी भर दी थी। 


इसके बाद डब्ल्यूएचओ के समर्थन से आपात कार्यों के लिए बनी अमेरिकी फेडरल टॉस्क फोर्स ने 100 से ज्यादा युवकों के स्वास्थ्य परीक्षण के बाद दस वालंटियर को चुन लिया है। ऐसे परीक्षणों पर नजर रखने वाली शिकागो के ल्यूरी चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल में मेडिकल एथिक्स की प्रोफेसर सीमा के शाह ने कहा कि शायद ऐसे परीक्षण समय की मांग हैं, लेकिन सारे मानक पूरा करके ही आगे बढ़ना बेहतर है। डब्ल्यूएचओ ने भी कहा है कि समाज के लाभ के खातिर इसकी सशर्त अनुमति दी जा सकती है, लेकिन इसमें पूरी तरह स्वस्थ और युवा वालंटियर को ही शामिल किया जाए।  


वैक्सीन के पारंपरिक तरीके से अलग
वैक्सीन के पारंपरिक परीक्षण में वालंटियर को प्रायोगिक या प्लेसबो (सांकेतिक दवा) वैक्सीन दी जाती है और शोधकर्ता देखते हैं कि कौन सा व्यक्ति संक्रमित होता है। इसमें लंबा वक्त और हजारों वालंटियर की जरूरत पड़ती है। शुरुआत में यह पता करना मुश्किल होता है कि वैक्सीन किसका बचाव करेगी, किसका नहीं। 


मलेरिया, टायफाइड, कालरा में इस्तेमाल
पिछले कुछ दशकों में मलेरिया, टायफाइड, कालरा, इनफ्लूएंजा समेत कई बीमारियों पर चैलेंज ट्रायल कर इलाज खोजा गया है। वैक्सीन को तेजी से मंजूरी मिलने में यह बेहद कारगर रही।वर्ष 2016 में जीका वायरस के हमले के बाद चैलेंज ट्रायल के जरिये टीका बनाने में सफलता मिली।  


कैसे होगा परीक्षण-
शुद्धता के साथ तैयार होता है वायरल स्ट्रेन 
डोज की नियामक एजेंसियों से लेते हैं मंजूरी 
स्वतंत्र पैनल की निगरानी में सुरक्षित लैब में ट्रायल 
सघन निगरानी में वालंटियर को दी जाती है खुराक 
दुष्प्रभावों का अध्ययन कर सुधार किया जाता है
टीका सफल रहा तो व्यावसायिक उत्पादन को मंजूरी