क्यों लगता है ग्रहण, जानें-राहु-केतु वध की कथा


धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच सूर्य आ जाता है तो चंद्रग्रहण लगता है। जबकि सूर्य और पृथ्वी के बीच चन्द्रमा के आने की वजह से सूर्यग्रहण लगता है। इस दौरान चंद्र और सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाता है। सूर्य ग्रहण अमावस्या को और चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन लगता है। धार्मिक धारणाएं हैं कि सूतक और ग्रहण के दौरान कोई शुभ काम नहीं करना चाहिए। इन दौरान राहु और केतु का प्रकोप रहता है, जिससे बने काम भी बिगड़ जाते हैं। आइए, ग्रहण की कथा जानते हैं-


ग्रहण की कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में जब दैत्यों ने तीनों लोक पर अपना अधिपत्य जमा लिया। उस समय देवताओं ने भगवान श्रीहरि विष्णु का आह्वान कर उनसे तीनों लोकों की रक्षा की याचना की। तब भगवान श्रीहरि विष्णु जी ने युक्ति बताते हुए कहा-हे देवगण ! आप क्षीर सागर का मंथन करें। इससे अमृत की प्राप्ति होगी, जिसके पान ( पीने) से अमरता प्राप्त होती है। ध्यान रहे कि दानव अमृत पान न कर सके। अगर दानवों ने अमृत पान कर लिया तो आप उन्हें युद्ध में कभी हरा नहीं पाएंगे।


भगवान श्रीहरि विष्णु जी के वचनानुसार,क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया। इस मंथन से विष और अमृत सहित 14 रत्न प्राप्त हुए थे। जब देवतागण अमृत पान कर रहे थे। उस समय दैत्य राहु देवता की वेशभूषा में आकर देवताओं के साथ अमृतपान करने लगे। उस समय सूर्य और चंद्र देव ने उसे पहचान लिया।


भगवान श्रीहरि विष्णु को जैसे ही राहु के दुःसाहस का पता चला। उन्होंने तत्काल अपने सुदर्शन चक्र से राहु के धड़ को सिर से अलग कर दिया, लेकिन तब तक राहु ने अमृतपान कर लिया था। हालांकि, अमृत गले से नीच नहीं उतरा था, लेकिन उसका सिर अमर हो गया। कालांतर में राहु और केतु को चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के नीचे स्थान प्राप्त हुआ है। उस समय से राहु, सूर्य और चंद्र से द्वेष की भावना रखते हैं, जिससे ग्रहण पड़ता है।