...खाली डब्बे में तो श्रीकृष्ण रहते हैं


एक संन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर पहुंचे और कुछ देर वहां आराम करने के लिए बैठ गए। उस दौरान दुकानदार अपनी दुकान के डब्बों को ठीक प्रकार से लगा रहा था। संन्यासी ने एक डब्बे की ओर इशारा करते हुए दुकानदार से पूछा कि इसमें क्या रखा है। दुकानदार ने बताया कि इसमें नमक है। संन्यासी ने फिर दूसरे डब्बे की ओर इशारा करते हुए पूछा कि इसमें क्या है। दुकानदार ने बताया कि इसमें हल्दी है।


पता नहीं संन्यासी को क्या हुआ कि वह दुकानदार से उसकी दुकान में लगे हुए डब्बों के बारे में जानकारी करने लगे। वहीं दुकानदार भी थोड़ा धर्म-कर्म वाला व्यक्ति था तो वह भी संन्यासी को बहुत ही सहजता से जवाब देता गया। अंत में पीछे रखे खाली डब्बे के बारे में संन्यासी ने पूछा कि इसमें क्या है। दुकानदार बोला, उसमें श्रीकृष्ण हैं। संन्यासी यह सुनकर हैरान हो गए और बोले 'श्रीकृष्ण'। ऐसी किसी वस्तु का नाम तो उन्होंने आज तक नहीं सुना।


दुकानदार संन्यासी के भोलेपन पर मुस्करा बोला, महाराज हमारे यहां हर डब्बे में विभिन्न प्रकार की वस्तुएं हैं, सामान है लेकिन यह डब्बा खाली है। हम खाली को खाली न कहकर श्रीकृष्ण कहते हैं। वही तो हैं जो संसार में हर जगह हैं और जो खाली है, उसमें तो उनका साक्षात वास है। दुकानदार की बात सुनकर संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई।


उन्होंने सोचा जिस बात के लिए वह दर-दर भटक रहे हैं, वह छोटी सी बात एक दुकारदार ने उन्हें कितनी आसानी से समझा दी। वे संन्यासी उस छोटे से किराने के दुकानदार के चरणों में गिर पड़े और रोते हुए बोले सत्य वचन, क्योंकि भरे हुए में श्रीकृष्ण को स्थान कहां?


शिक्षा: काम, क्रोध, लोभ, मोह, लालच, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी, सुख-दुख की बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा? श्रीकृष्ण यानी ईश्वर तो खाली यानी साफ मन में ही निवास करते हैं। मन जब खाली होगा यानि भूतकाल की यादों से मुक्त, भविष्य की कल्पनाओं से रिक्त तभी तो ईश्वर की सच्ची भक्ति में लगेगा।