भले मास्क लगाने से कुछ लोग बातचीत करने में परेशानी महसूस करते हैं लेकिन संवाद विशेषज्ञ का मानना है कि मास्क लगाने से अपनी भावनाएं जाहिर करने में परेशानी नहीं आती। हमबोल्ड्ट यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन की प्रोफेसर व संवाद विशेषज्ञ उर्सुला हेस का कहना है कि किसी व्यक्ति से बात करते वक्त हमारे मुंह से ज्यादा अहम भूमिका आंखें और आवाज निभाती हैं इसलिए मास्क बाधा नहीं बनता।
संवाद में मुंह से ज्यादा आवाज की भूमिका
संवाद विशेषज्ञ उर्सुला हेस ने अपने विश्लेषण में पाया है कि जब कोई व्यक्ति भावनाएं जताता है तो उसके मुंह की बनावट बदलती है, जिससे आवाज में बदलाव होता है, जो ठीक उसी तरह सुनकर महसूस किया जा सकता है जैसे हम टेलिफोन पर सुनते हैं। उन्होंने पाया कि आशा या उम्मीद जैसे भाव मुंह से नहीं आवाज से पहचाने जाते हैं।
आंखें करती हैं सब बयां
प्रोफेसर उर्सुला कहती हैं कि मास्क लगाकर संवाद करते समय दूसरे व्यक्ति का पूरा फोकस मास्क लगाए व्यक्ति के ऊपरी चेहरे पर जाता है। जिससे वह आंखों के भाव, माथे पर पड़ने वाली शिकन और गाल के ऊपरी हिस्से को ध्यान से देख पाता है। इस तरह मास्क लगाकर बातचीत कर रहे व्यक्ति के भाव समझे जा सकते हैं, साथ ही यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस व्यक्ति के दिमाग में क्या चल रहा है।
मास्क में भी होगा मुस्कान का अहसास
विशेषज्ञ उर्सुला बताती हैं कि मास्क मुंह की मुस्कान को ढांक भले दे पर उसे छुपा नहीं सकता। जब कोई व्यक्ति मुस्कुराता है तो उसके गाल के ऊपरी हिस्सा हल्का सा उठता है, जिससे हंसी का पता लग जाएगा। साथ ही व्यक्ति की मुस्कान के समय ज्यादा चौड़े हो गए होंठों को हम भले न देख पाए पर हंसी की आवाज उस मुस्कान का अहसास दे देती है।