रेल अफसरों ने बिना टाइम टेबल दौड़ा दीं ट्रेनें, रूट भी तय करना भूले

रास्ते से भटक गईं दर्जनों ट्रेनें यात्रियों को मुसीबत में डाला स्पीड घटते ही बेपटरी हुए हालात।



लखनऊ । राष्ट्र की जीवन रेखा...इस स्लोगन से उलट संकट की घड़ी में रेल अफसरों की बेपरवाही ने लाखों मजदूरों को उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया। आलम यह था कि मजदूरों को घर पहुंचाने वाली ट्रेनों को चलाने से पहले उनका टाइम टेबल तक नहीं बनाया गया। न ही रूट का ध्यान रखा कि किस गाड़ी को कहां से गुजारा जाएगा। संचालन से पहले आपाधापी, आधी-अधूरी तैयारी और जोन के बीच शून्य समन्वय के हालात इस कदर जटिल हो गए कि सीधी पटरियों पर दौडऩे वाली ट्रेनें रेलवे के इतिहास में पहली बार रास्ता भटक गईं। यहां तक कि एशिया की सबसे बड़ी कार्ट लाइन नई दिल्ली से हावड़ा रूट पर टूंडला से प्रयागराज तक ट्रेनों की धीमी स्पीड ने पटरियों पर जाम लगा दिया।


जिस यूपी के नौ रेल मंडलों के लगभग 9270 किलोमीटर के ट्रैक से प्रतिदिन 1300 ट्रेनें धड़धड़ाती हुई गुजरती थीं, उसपर 200 ट्रेनों के संचालन में सिस्टम की सांस फूल गई। दरअसल, किसी भी ट्रेन को चलाने के लिए उसका टाइम टेबल अहम होता है। यात्री को भी यही रास्ता दिखाता है। रेलवे टाइम टेबल बनाते समय यह तय करता है कि ट्रेन के छूटने के बाद उसका ऑपरेशन व कॉमिर्शयल ठहराव कहां होगा। उस पर कितना समय लगेगा। औसत गति क्या होगी। रूट क्या होगा। यह भी देखा जाता है जिस समय पर ट्रेन चल रही होती है, उस समय सेक्शन पर आगे या क्रासिंग पर कोई ट्रेन तो नहीं है। यही टाइम टेबल आने वाले सभी बड़े रेलवे स्टेशनों पर लोको पायलट व गार्ड की व्यवस्था के भी काम आता है।


शुरुआती टाइम टेबल बनाकर भूले, ऐसे फेल हुआ प्लान


रेलवे ने जब एक मई को श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की शुरुआत की तो उसने टाइम टेबल बनाया। प्रतिदिन औसतन 40 ट्रेनें चलीं तो पहले से बनाए गए पाथ से होकर समय भी नियंत्रित रहा। हालात बिगड़े 12 मई के बाद से। धीरे-धीरे रेलवे बोर्ड की प्लानिंग फेल होने लगी। बिना किसी टाइम टेबल के महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कर्नाटक व दक्षिण भारत से 200 से ज्यादा ट्रेनें रवाना कर दी गईं। इनमें रोजाना औसतन यूपी आने वाली करीब 150 ट्रेनों में से दो तिहाई पूर्वांचल की तरफ आईं। गोरखपुर भारत में किसी प्रवासी श्रमिकों को लाने वाला सबसे बड़ा स्टेशन बना। यहां 24 मई तक 194 ट्रेनें पहुंचीं। यह ट्रेनें बिना किसी पूर्व प्लानिंग के जब उत्तर मध्य रेलवे के सेक्शन पर आईं तो उनको रोक दिया गया। इधर, उत्तर मध्य रेलवे ने टूंडला से कानपुर तक 23 व 24 मई को 130 किलोमीटर प्रति घंटे की क्षमता वाले रूट पर कई श्रमिक ट्रेनों की अधिकतम स्पीड घटाकर 50 से 60 किलोमीटर प्रति घंटा कर दिया। ऐसे में झांसी से कानपुर, टूंडला से प्रयागराज और जबलपुर-प्रयागराज रूट जाम हो गया। ट्रेनों को दिल्ली डायवर्ट किया गया। जिससे उनको अधिक समय भी लगा।


इन व्यस्त मंडलों में लगा जाम


यूपी में चार जोन के नौ रेल मंडल आते हैं-उत्तर रेलवे का मुरादाबाद, लखनऊ, पूर्वोत्तर रेलवे का लखनऊ, इज्जतनगर व वाराणसी, उत्तर मध्य रेलवे का इलाहाबाद, आगरा व झांसी जबकि ईसी रेलवे का दीन दयाल उपाध्याय नगर मुगलसराय रेल मंडल आता है। यूपी में पूर्वांचल आने वाले सबसे अधिक यात्री प्रयागराज, वाराणसी, लखनऊ और गोरखपुर उतरते हैं। प्रयागराज से वाराणसी की लाइन एक बड़े हिस्से से गुजरती है जबकि प्रयागराज से ही दीन दयाल उपाध्याय नगर होकर बिहार की ट्रेनें गुजरती हैं। इस समय 12 मई से शुरू हुई पूर्वोत्तर की स्पेशल ट्रेनें भी प्रयागराज होकर जा रही हैं। ऐसे में बॉटल नेक जाम होने का खामियाजा यूपी आने वाली 100 ट्रेनों के 1.20 लाख यात्रियों ने भुगता जिनको 24 घंटे का सफर 60 से 70 घंटे में करना पड़ा। इलाहाबाद, झांसी रेल मंडल में ट्रेनें सबसे अधिक प्रभावित हुईं।


चार गुना तक आती हैं ट्रेनें


रेलवे ने 25 मई तक 3060 प्रवासी स्पेशल ट्रेनें चलाईं, जिसमें 1245 यूपी में आईं। करीब नौ सौ ट्रेनें पूर्वांचल पहुंचीं जबकि 846 ट्रेनें बिहार निकल गईं। रोजाना औसतन यूपी में आने वाली 150 ट्रेनों से चार गुना सामान्य दिनों में ट्रेनें पूर्वांचल के चार बड़े स्टेशनों पर आती हैं। इन स्टेशनों पर इतना लोड लखनऊ 300 लखनऊ जंक्शन व ऐशबाग 40 प्रयागराज 160 गोरखपुर 100 वाराणसी 140


जिन राज्यों से स्पेशल ट्रेनें चलीं उनका टाइम टेबल नहीं बना था। बिना शेड्यूल देरी से हमको ट्रेनें मिलीं। एक साथ कई ट्रेनें आने से कंजेशन हो गया था।


अजीत कुमार सिंह, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी, उत्तर मध्य रेलवे