कोरोना प्रभावित दुनिया के टॉप 10 देशों में शामिल हुआ भारत

सबसे बुरी तरह से प्रभावित मुंबई के अस्पतालों में बिस्तर कम पड़ने लगे हैं। वहां सरकारी और निजी दोनों तरह के अस्पतालों में इन दिनों सिर्फ कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज हो रहा है।



नई दिल्ली। कोरोना प्रभावित दुनिया के टॉप 10 देशों की सूची में भारत शुमार हो गया है। इसी के साथ यहां मौजूद अस्पतालों में बिस्तरों की कमी की बात भी उठने लगी है। सबसे बुरी तरह से प्रभावित मुंबई के अस्पतालों में बिस्तर कम पड़ने लगे हैं। वहां सरकारी और निजी दोनों तरह के अस्पतालों में इन दिनों सिर्फ कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज हो रहा है उसके बाद भी बिस्तर पूरे नहीं पड़ पा रहे हैं।


1.3 अरब आबादी वाले देश में कोरोना महामारी के कारण अचानक से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक बोझ पड़ा है। अस्पतालों की कमी, मरीजों के लिए वार्ड और बिस्तर की कमी देश पहले ही झेल रहा है। स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच की दृष्टि से भारत को 195 देशों में 145वीं रैंकिंग हासिल है। हालांकि चिकित्सा शोध में देश के वैज्ञानिक कड़ी मेहनत कर रहे हैं। डीडब्ल्यूए वेबसाइट ने भी इस बारे में एक रिपोर्ट छापी है। 


रिपोर्ट के अनुसार अब आलम ये हो गया है कि जिनके घर-परिवार में कोई बीमार हो जा रहा है वो अस्पताल में बेड की तलाश करने के लिए चक्कर लगा रहे हैं। अस्पतालों में बेड देने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। जिन अस्पतालों में बेड की संख्या कम है वहां पहले से ही मरीज भरे पड़े हैं। नए मरीजों को भर्ती नहीं किया जा पा रहा है। अस्पताल के डॉक्टर उन्हें दूसरी जगह जाकर इलाज कराने की सलाह दे रहे हैं। 


एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल चक्कर काटने के दौरान कई मरीजों की मौत भी हो जा रही है। एक मई के बाद से अब तक मुंबई के कई अस्पतालों से ऐसी सूचनाएं भी मिली हैं जिसमें मरीज को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल और फिर वहां से तीसरे अस्पताल में जाने के लिए कहा गया, इस दौरान उसकी मौत हो गई। पीड़ित परिवार के लोग आए दिन ऐसी शिकायतें कर रहे हैं।


निजी अस्पतालों पर संदेह 


बीते कई सालों से भारत में निजी अस्पतालों ने देश के स्वास्थ्य सेवा की कमान एक तरह से संभाल रखी है। सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा और धन की कमी का निजी अस्पतालों ने जमकर फायदा भी उठाया है। मगर एक बात ये भी तय है कि जिस तरह से मुंबई में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है उससे एक समय ऐसा आने वाला है जब यहां के निजी अस्पताल भी इनके लिए कम पड़ जाएंगे। वो भी इनका बोझ नहीं उठा पाएंगे।


सोमवार को भारत में कोरोना के कुल 6,977 मामले सामने आए जो देश के लिए एक दिन में संक्रमित होने वाले लोगों की अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में कोरोना के मामले 13 दिन में दोगुने हो रहे हैं। सोमवार को संक्रमण में हुई बढ़ोत्तरी के साथ ही भारत ने ईरान को पीछे छोड़ दिया है। इसी के साथ भारत कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित 10 देशों में शामिल हो गया है।


इस बारे में मिशिगन यूनिवर्सिटी में जैव सांख्यिकी और महामारी विज्ञान के प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी का कहना है कि बढ़ती दर नीचे नहीं जा रही है, हम कर्व को फ्लैट होते नहीं देख रहे हैं, उनकी टीम का अनुमान है कि भारत में जुलाई की शुरुआत तक 6,30,000 से 21 लाख तक की आबादी कोरोना की चपेट में आ सकती है।


भारत में कोरोना के 20 फीसदी मामले केवल मुंबई में हैं। अभी यहां और भी बढ़ोतरी होनी तय मानी जा रहा है। देश इतने अधिक मरीजों को कैसे संभालेगा ये एक बड़ा सवाल है? देश के तमाम अस्पताल सामान्य दिनों में ही मरीजों से भरे रहते हैं। केंद्र सरकार ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा है कि सारे मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ती और वह अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ाने और स्वास्थ्य उपकरणों को हासिल करने के लिए तेज कदम उठा रही है।


बिस्तरों की कमी 


सरकार के पिछले साल के आंकड़े बताते हैं कि देश के अस्पतालों में करीब 7,14,000 बिस्तर हैं। 2009 में यह संख्या 5,40,000 थी। देश की बढ़ती आबादी की तुलना में प्रति 1000 लोगों पर अस्पताल के बिस्तरों की संख्या में बहुत मामूली सुधार हुआ है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ओईसीडी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रति 1000 लोगों पर मात्र 0.5 बिस्तर मौजूद हैं। इसकी तुलना अगर दूसरे देशों से करें तो चीन में यह आंकड़ा 4.3 और अमेरिका में 2.8 है। 


देश में करोड़ों लोग सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर हैं, खासतौर से ग्रामीण इलाकों में। हालांकि अस्पताल में भर्ती होने वाले 55 फीसदी लोग निजी अस्पतालों में जाते हैं। बीते दो दशकों में देश के बड़े शहरों में निजी अस्पतालों का बड़ी तेजी से विकास हुआ है और भारत के मध्यवर्गीय लोग इनका उपयोग कर रहे हैं।


मुंबई के म्युनिसिपल अथॉरिटी का कहना है कि उसने सरकारी अधिकारियों को कम से कम 100 निजी अस्पतालों के बेड अपने नियंत्रण में लेने का आदेश दिया है ताकि कोरोना वायरस के मरीजों के लिए बिस्तर मुहैया कराए जा सकें हालांकि इसके बाद भी लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है।


कर्मचारियों की कमी 


अस्पतालों में सिर्फ बिस्तरों की कमी नहीं है बल्कि उनके पास कोविड-19 के गंभीर मरीजों की देखभाल के लिए पर्याप्त कर्मचारी भी नहीं है। इसी का नतीजा यह हुआ है कि रेसिडेंट डॉक्टरों को आराम के लिए केंद्र सरकार से निर्धारित समय से भी कम समय मिल रहा है। कुछ डॉक्टरों ने बताया कि वे पहले से ही बहुत सारे मरीजों का इलाज कर रहे हैं।


कई बार उनके पास पर्याप्त सुरक्षा उपकरण भी नहीं होते और उन्हें खुद को संक्रमण के जोखिम में डाल कर दूसरों का इलाज करना पड़ रहा है। बीते सप्ताह में मुंबई, पश्चिमी गुजरात, आगरा और कोलकाता के अस्पतालों को बंद करना पड़ा क्योंकि कुछ स्वास्थ्य कर्मचारी कोरोना वायरस की चपेट में आ गए थे। नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के 2500 रेजिडेंट डॉक्टरों के संघ के प्रमुख डॉ आदर्श प्रताप सिंह का कहना है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं को कभी प्रमुखता नहीं दी गई। 


सरकार को अब सच्चाई का अहसास हो रहा है मगर अब बहुत देर हो चुकी है। एम्स के डॉक्टरों ने पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों की कमी को लेकर प्रदर्शन भी किया है। उन्होंने अपने वेतन का कुछ हिस्सा कोरोना वायरस फंड में दान करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील को भी सार्वजनिक रूप से ठुकरा दिया। स्वास्थ्य मामले के कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत कम निवेश किया है। सरकार अपनी जीडीपी का महज 1.5 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करती है।


1980 के दशक में तो यह महज 1.3 फीसदी था और पांच साल पहले 1.3 फीसदी। इस साल मोदी सरकार ने स्वास्थ्य बजट को 6 फीसदी बढ़ा दिया हालांकि इसके बावजूद यह सरकार के अपने ही लक्ष्य से काफी पीछे है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक सरकार ने स्वास्थ्य सेवा पर खर्च 2025 तक जीडीपी का ढाई फीसदी करने की बात कही थी। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच मरीजों की तादाद लगातार तेजी से बढ़ रही है और ऐसे में अब अस्पताल में बिस्तरों की कमी का मामला उठ रहा है।