खिलाने को नहीं बचे पैसे तो रिहा कर दिए परिंदे


लखनऊ। हरियाली यानी हमारी जमा पूंजी, हमारी आमदनी और परिंदे यानी जिंदगी की छोटी छोटी खुशियां। ये नज़्म बेसाख्ता याद आई नक्खास के चिड़िया बाजार की हालत को देख कर। कभी चिड़ियों से गुलजार रहने वाला ये इलाका वीरान हो गया है। परिंदे पिंजरों से हमेशा के लिए चले गए हैं।


दरअसल इनका कारोबार करने वाले कई बहेलिए खुद संक्रमण का शिकार हो गए। और कईयों को दो महीने के लॉक डाउन ने इतना तोड़ दिया कि उनके पास परिंदों को खिलाने के पैसे तक नहीं बचे। लिहाजा उन्होंने आखिर में एक हजार से अधिक फिंच, लाल और डाक्टर पंक्षी को पिंजरे से रिहा कर दिया ताकि वह भूखे न मरे। लॉकडाउन में इंसान घरो में कैद हो गए लेकिन परिंदों को आजादी मिल गई।


 पंक्षी विक्रेता कैलाश बताते हैं कि लॉक डाउन से चार दिन पहले एक हजार से अधिक लाल, फिंच, व डाक्टर पंक्षी बेचने के लिए लाए थे। अचानक लॉक डाउन लग जाने से बाजार नहीं लग पाई। उम्मीद थी कि एक सप्ताह में लॉक डाउन खत्म हो जाएगा। एक महीने तक तो पंक्षियों को अपनी जेब से काकुन व बजरा खिलाते रहे लेकिन जब अपने पास भी पैसे खत्म हो गए तो पंक्षियों को आजाद करना ही एक विकल्प रह गया। कैलाश बताते हैं कि रोजाना चार से पांच किलो काकुन व बजरा पंक्षी खा जाते हैं। अभी एक सप्ताह पहले हरदोई रोड स्थित जागर्स पार्क के बाहर पिंजरे से सभी पंक्षियों को आजाद कर दिया।


4 लाख से अधिक का हुआ नुकसान
पुराने लखनऊ की चिड़िया बाजार सैकड़ों साल पुरानी है। यह लखनऊ की एक मात्र बाजार हैं, जहां पर इंगलिश तोते, लव बर्ड और विदेशी पंक्षी बिकने के लिए आते हैं। लखनऊ समेत आसपास के लोग अपने घर के लिए पालतू पंक्षी यहीं से खरीद कर ले जाते हैं। खासकर रविवार को यहां पर पंक्षियों की बड़ी बाजार लगती है। कैलाश बताते हैं कि गर्मियों में पहाड़ी व देसी तोते बाजार में बिकते हैं। लोग बड़े शौक से तोते खरीदते हैं और अपने घरों में पालते हैं, लेकिन लॉक डाउन की वजह से बार तोते भी नहीं आ पाएं हैं। दो महीने में करीब 4 लाख से अधिक का नुकसान हुआ है। हरि बताते हैं कि लव बर्ड को कौवे मार डालते हैं, इसलिए उनको छोड़ नहीं सकते। उनके खाने पीने का बंदोबस्त अब भी करना पड़ रहा है।