चिंता एक मुसीबत है और चिंतन उसका समाधान


मनुष्य के जीवन में जीने के दो रास्ते हैं चिंता और चिंतन। यहां पर कुछ लोग चिंता में जीते हैं और कुछ चिंतन में। चिंता में हजारों लोग जीते हैं और चिंतन में दो-चार लोग ही जी पाते हैं। चिंता स्वयं में एक मुसीबत है और चिंतन उसका समाधान। चिंता होने से आसान से भी आसान कार्य मुश्किल लगने लगता है जबकि चिंतन मुश्किल से भी मुश्किल कार्य को काफी आसान बना देता है।


जीवन में हमें इसलिए पराजय नहीं मिलती कि कार्य बहुत बड़ा था। हमें इसलिए पराजय मिलती है क्योंकि हमारे प्रयास बहुत छोटे होते हैं। हमारी सोच जितनी छोटी होगी, हमारी चिंता उतनी ही बड़ी होगी। हमारी सोच जितनी बड़ी होगी, हमारे कार्य करने का स्तर भी उतना ही श्रेष्ठ होगा। जीवन में कठनाइयां आती अवश्य हैं लेकिन चिंता किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकती। चिंता हमारी सोचने की क्षमता को अवरुद्ध कर देती है और यही अवरोध हमारे दुखों का मूल कारण बनते हैं। चिंताग्रस्त व्यक्ति एक बार नहीं अनेक बार मरता है। वह एक बार नहीं आजीवन जलता रहता है।


किसी भी समस्या के आ जाने पर उसके समाधान के लिए विवेकपूर्ण निर्णय ही चिंतन है। चिंतनशील व्यक्ति के लिए कोई न कोई मार्ग अवश्य मिल भी जाता है। उसके पास विवेक है और वह समस्या के आगे से हटता नहीं बल्कि डटता है। समस्या के आगे डटना, समस्या का डटकर मुकाबला करना ही आधी सफलता प्राप्त कर लेना है।


आप अगर आध्यात्मवादी हैं तो फिर चिंतन करिए उस पावन प्रभु का जो बिन चाहे ही हम आप सब की चिंताओं का हरण कर लेते हैं। सच कहूं तो प्रभु नाम में विश्वास से बढ़कर कोई श्रेष्ठ चिंतन नहीं और चिंता का निवारण भी नहीं है।