लंका दहन करने के बाद हनुमान जी को क्यों हुआ था पश्चाताप


दूरदर्शन पर ‘रामायण’  री-टेलीकास्ट होने के बाद पुराने दिन जैसे वापस लौटकर आ गए हैं। कोरोना वायरस लॉकडाउन में समय बिताने का यह सबसे अच्छा तरीका है। वहीं, बात करें रामायण की, तो ज्यादातर लोग पहले भी रामायण देख चुके हैं लेकिन फिर भी उनमें उनमें नए एपिसोड को लेकर उत्सुकता बनी रहती है। रामायण में कुछ दिनों लंका दहन का प्रसंग दिखाया गया था। महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में लंका दहन के उल्लेख के साथ हनुमान जी की व्यथा का भी उल्लेख किया गया है। 'हनुमानजी ने जब रावण की लंका जलाई, तो उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ, क्योंकि हनुमानजी एकादश रुद्र के अवतार हैं। 



दस सिरों को काटकर की थी महामृत्युंजय की आराधना 
रावण ने अपने दस सिरों को काटकर महामृत्युंजय की आराधना की थी लेकिन ग्यारहवां रुद्र हमेशा असंतुष्ट ही रहा और यही रुद्र त्रेता युग में हनुमान के रूप में अवतरित हुआ। हनुमानजी का अवतार ही रावण के विनाश के लिए भगवान श्रीराम के सहायक के रूप में हुआ था।


हनुमानजी को क्यों हुआ पश्चाताप 
जब हनुमानजी ने रावण की लंका जला दी, तो उनका मन कई उलझनों में था। उन्हें लंका दहन करने पर पश्चाताप हो रहा था। वाल्मीकि रामायण में श्लोक है


'यदि दग्धात्वियं सर्वानूनमार्यापि जानकी। दग्धा तेन मया भर्तुहतमकार्यजानता।'


हनुमान जी को लगा कि जब उन्होंने पूरी लंका जला दी, तो माता सीता भी उसमें जल गईं होगी। यह सोचकर उन्हें आत्मग्लानि हुई कि वे प्रभु श्रीराम की मदद के लिए आए थे और यहां आकर उन्होंने लंका जलाकर माता सीता का अहित कर दिया। जब सीता ही नहीं रहीं तो राम भला कैसे जी पाएंगे। फिर सुग्रीव-राम की मैत्री के मायने क्या रह जाएंगे? हनुमान जी यह भी भूल गए कि जिसने थोड़ी देर पूर्व उन्हें अजर-अमर होने का आशीर्वाद दिया था, वे देवी भला आग की भेंट कैसे चढ़ सकती हैं?


'अजर- अमर गुण निधि सुत होहू, करहिं सदा रघुनायक छोहू'।