आस्था का महापर्व चैती छठ, जानें कब है खरना, संध्या अर्घ्य और प्रातः अर्घ्य

इस साल चैती छठ मंगलवार 30 मार्च को है। चार दिनों के इस महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय के दिन से होती है।



आस्था का महापर्व छठ साल में दो बार मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र और कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है। इस साल चैती छठ मंगलवार 30 मार्च को है। चार दिनों के इस महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय के दिन से होती है। इसके अगले दिन खरना मनाया जाता है, जबकि षष्ठी को संध्या अर्घ्य एवं सप्तमी उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। आइए जानते हैं आस्था का महापर्व चैती छठ कब है और कैसे मनाया जाएगा।


रविवार 28 मार्च को नहाय-खाय


चार दिनों तक चलने वाले आस्था के महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस साल 28 मार्च को नहाय खाय है। इस दिन नदी, तालाब और सरोवरों में स्नान किया जाता है। इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दी जाती है। वहीं, छठी मैया की पूजा-अर्चना कर इस महापर्व की शुरुआत की जाती है। इस दिन खाने में लौकी की सब्जी, अरवा चावल और चने की दाल खाने का विधान है।


सोमवार 29 मार्च को है खरना


चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी को खरना है। यह नहाय-खाय के एक दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन व्रती दिन भर उपवास करती हैं। संध्याकाल में स्नान-ध्यान के बाद छठी मैया को ध्यान कर उनकी पूजा की जाती है। इसमें छठी मैया को प्रसाद के रूप में गुड़ और चावल से बनी खीर, गेंहू के आटे और गुड़ से बने ठेकुआ और पूरी भेंट की जाती है। एक बार पूजा सम्पन्न हो जाने के बाद सबसे पहले व्रती खाते हैं। इसके बाद परिवार के सभी लोग पूजा गृह में ही प्रसाद प्राप्त करते हैं।


मंगलवार 30 मार्च को है संध्या अर्घ्य


चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को संध्या अर्घ्य है। यह आस्था के महापर्व छठ पूजा के तीसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन संध्याकाल में अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती इस दिन निर्जला उपवास करती हैं। सूर्य देव को अर्घ्य में फल, फूल, पकवान, ईख आदि प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है। कई लोग जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। 


बुधवार 31 मार्च को है प्रातः अर्घ्य


चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को प्रातः काल सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस अर्घ्य देने के पश्चात छठ पूजा का समापन हो जाता है। इस दिन लोग सूर्योदय से पूर्व उठते हैं और नहा धोकर सबसे पहले डाले को सजाते हैं। फिर घाट पर जाकर सूर्य देव की उपासना की जाती है। व्रती नदी, तालाब और सरोवरों में खड़े होकर सूर्य देव का ध्यान करते हैं। जब सूर्योदय होता है तो व्रती एक एक कर सभी डालों का अर्घ्य देते हैं। इस मौके पर दूध और जल का भी अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद व्रती जल ग्रहण व्रत को तोड़ते हैं।