मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क आकर देखें बाघों के साथ और भी कई ऐतिहासिक धरोहर

भले ही बांधवगढ़ सिर्फ टाइगर के लिए ही मशहूर होलेकिन इस स्थान पर इतिहास और आस्था दोनों हैं। जिसे आप यहां आकर भली-भांति देख और समझ सकते हैं।...



बात 2005 की है। मैं टाइगर पर एक प्रोजेक्ट कर रहा था। उस प्रोजेक्ट के लिए मुझे बांधवगढ़ जाना पड़ा। इससे पहले भी मैंने जंगल में टाइगर देखे और फोटोग्राफ लिए थे, लेकिन बांधवगढ़ पहली बार जा रहा था। मैंने अपने कैमरे और जरूरी उपकरण पैक किए और निकल पड़ा। बांधवगढ़ जाने के लिए सिर्फ ट्रेन ही सबसे अच्छा माध्यम था। मैंने दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से उत्कल एक्सप्रेस ली और 19 घंटे का सफर शुरू हुआ। मैं सुबह 7 बजे उमरिया रेलवे स्टेशन उतरा। वहां से बांधवगढ़ करीब 40 किमी. है। वहां से एक लोकल बस में चढ़ा और बांधवगढ़ का टिकट लिया। वहां पहुंचने के बाद होटल मोगली में विश्राम किया। वहां मुझे मेरा सफारी ड्राइवर ददन शुक्ला मिले। उन्होंने मुझे बांधवगढ़ के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताए।


इतिहास और आस्था का संगम


इन रोचक तथ्यों में से एक था बांधवगढ़ पठार। ददन की बातों से मुझे यह समझ आया कि भले ही बांधवगढ़ सिर्फ टाइगर के लिए ही मशहूर हो,लेकिन इस स्थान पर इतिहास और आस्था दोनों हैं। शाम की जंगल सफारी 3 बजे होती थी। ठीक 3 बजे गेट खुला। बांधवगढ़ पार्क में घुसते ही मुझे एक छोटा-सा मंदिर दिखा, जिसमें शिव लिंग स्थापित था। मैंने ददन से पूछा कि यहां शिवलिंग क्यों है, तो उसने मुझे बताया कि यहां एक योगी रहते थे, जिनका नाम था सिद्धबाबा। कहते हैं कि यह स्थान इतना पवित्र है कि यहां कभी भी टाइगर ने किसी भी जानवर को नहीं मारा, बल्कि यहां एक टाइगर सिद्धबाबा के पास घास के मैदान में अक्सर धूप सेंकते मिल जाता है। मादा बाघ और उसके 4 बच्चे शाम को सिद्धबाबा मंदिर के पास खेलते हुए दिख जाते हैं।


बांधवगढ़ किला


वहां से आगे बढ़ते हुए चक्रधरा मैडोज पहुंचे। यहां से बांधवगढ़ किले का नजारा दिखता है। यह किला बांधवगढ़ पठार पर है। ददन ने मुझे बताया कि बांधवगढ़ वह किला है, जिसे प्रभु श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण को दिया था। बांधव मतलब भाई और गढ़ मतलब फोर्ट। यहां से ही इस स्थान का नाम बांधवगढ़ पड़ा माना जाता है। बाद में बांधवगढ़ में महाराजा रीवा का राज था। किले पर जाने से पहले यहां भगवान विष्णु की लेटी हुई वह प्रतिमा है, जिसे शेष शय्या कहते हैं। साल में एक बार जन्माष्टमी के समय यहां पर मेला लगता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि शेष शय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु जन्माष्टामी के दिन जाग जाते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं। जीप आगे बढ़ाते ही टाइगर अलार्म आनी शुरू हुई, जो लंगूर आदि जानवर टाइगर को देखकर दूसरे जानवरों को सावधान करने के लिए आवाज निकालते हैं। ददन ने मुझे बताया कि इस चक्रधरा एरिया में चक्रधरा टाइगर्स हैं और यह मेल टाइगर बी 2 एरिया है। बी 2 टाइगर दुनिया में सबसे बड़ा देखा गया टाइगर है, जिस पर सबसे ज्यादा डाक्यूमेंट्री बनी हैं। मैं बी 2 टाइगर देखने का मौका छोडऩा नहीं चाहता था। मैंने बैग से अपना कैमरा निकाला और इंतजार करने लगा अगले अलार्म का। 5 मिनट बाद एक और अलार्म हुआ। इस बार पूरे दिन की अलार्म कॉल थी। जब भी पूरे दिन की कॉल आती है, तो हर जंगलवासी को यह मालूम हो जाता है कि आसपास टाइगर या तेंदुए का मूवमेंट हो रहा है।


मैंने अपने कैमरे को ऑन किया और जहां से अलार्म कॉल आई थी, वहां मैं देखने लगा। चक्रधरा की घास में से मैंने एक टाइगर को निकलते देखा। ददन उत्साहित होकर बोले- बी 2 और मेरा कैमरा शुरू हो जाता है बी 2 की तस्वीर क्लिक करने में। बी 2 सीधा जीप के सामने आया और साइड से निकल गया। जो तस्वीरें बी2 टाइगर की क्लिक हुईं, उनका जवाब नहीं था। ऐसे मौके जिंदगी में बहुत कम मिलते हैं। मैं तस्वीरें देखकर बहुत खुश हुआ। मैंने सोचा कि आज अच्छे फोटो मिले हैं तो मैं भी शेष शय्या जाकर भगवान विष्णु का दर्शन कर लूं। मैंने ददन से शेष शय्या चलने को कहा। शेष शय्या पर भगवान विष्णु की लेटी हुई प्रतिमा है। उनके चरणों से एक धारा निकलती है, जिसको चरण गंगा कहते हैं। यह चरण गंगा पूरे बांधवगढ़ इलाके को पानी देती है।


शेष शय्या चट्टान को हाथों से काटकर बनाई गई है। यह मूर्ति कम से कम 2000 साल पुरानी मानी जाती है। मूर्ति को देखकर मुझे लेटे हुए बुद्ध (थाईलैंड) की याद आ गई, जो मुझे बिल्कुल शेष शय्या की कॉपी लग रहा था। शेष शय्या के दर्शन के बाद हम वापस निकले, क्योंकि दिन छिपने वाला था और इसके पहले गेट से बाहर निकलना जरूरी होता है। जब हम बाहर निकले तो मैंने एहसास किया कि बांधवगढ़ टाइगर्स के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व की भी जगह है। यहां का किला और भगवान विष्णु लेटी हुई मूर्ति वास्तुकला के हिसाब से बेमिसाल है।


बांधवगढ़ मुझे इतना पसंद आया कि मैंने आगे यहां अपने जीवन के 4 साल बिताए और पर्यावरण पर डाक्यूमेंट्री की। साथ में सुरक्षित टाइगर के लिए फोटोग्राफी भी। आज भी जब मन होता है, मैं बांधवगढ़ चला जाता हूं और अपने जीवन के शुरुआती पलों के बांधवगढ़ को याद करता हूं।