कुशीनगर में चढ़ा सियासी पारा, टक्कर कांटे की


कुशीनगर। विश्व प्रसिद्ध भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में इन दिनों सियासी पारा चढ़ा है। भाजपा के सामने जहां इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने की चुनौती है, वहीं कांग्रेस एक दशक बाद फिर सीट झटकने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। भले ही इस सीट को सपा या बसपा कभी जीतने में कामयाब नहीं रही है, लेकिन अबकी अपना परचम लहराने के लिए दोनों गठबंधन कर मैदान में हैं।


राजनीतिक तौर पर कुशीनगर क्षेत्र में कभी कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था, लेकिन अब भाजपा का परचम लहरा रहा है। एक दशक पहले परिसीमन से पडरौना लोकसभा सीट का वजूद खत्म होने से कुशीनगर लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी। कुशीनगर जिले की सात विधानसभा सीटों में कुशीनगर लोकसभा सीट में खड्डा, पडरौना, कुशीनगर, हाटा और एससी के लिए सुरक्षित रामकोला विधानसभा सीट है। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते भाजपा, कुशीनगर संसदीय सीट को भी कांग्रेस से छीनने में कामयाब रही थी। तकरीबन दो वर्ष पहले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा जहां खुद चार विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब रही थी वहीं रामकोला सीट पर सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) ने जीत दर्ज कराई थी। किसी भी विधानसभा सीट पर सपा, बसपा या कांग्रेस को सफलता नहीं मिली थी।


कुशीनगर लोकसभा सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद राजेश पाण्डेय के बजाय अब की पूर्व विधायक विजय दुबे पर दांव लगाया है। पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर खड्डा से विधायक रह चुके दुबे पहले हिन्दू युवा वाहिनी के जिला संयोजक थे। दुबे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी माने जाते हैैं। चर्चा है कि विजय को कुशीनगर से चुनाव लड़ाने में योगी की ही अहम भूमिका है। चूंकि भाजपा से नाराज एसबीएसपी के मुखिया और मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए अपनी पार्टी से भी राजीव को मैदान में उतारा है इसलिए खासतौर से रामकोला क्षेत्र में माना जा रहा है कि पिछड़ी जाति के स्वाजातीय वोटों का एसबीएसपी से भाजपा को नुकसान हो सकता है।


कांग्रेस ने एक बार फिर राज परिवार से रतनजीत प्रताप नारायण (आरपीएन) सिंह को मैदान में उतारा है। सिंह यूपीए-टू सरकार में भूतल परिवहन, पेट्रोलियम सहित गृह राज्यमंत्री रहे हैैं। 2009 में सांसद बनने से पहले सिंह पडरौना विधानसभा सीट से तीन बार विधायक भी रहे हैैं। आरपीएन एक बार फिर सांसद बनने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए हैैं। सपा-बसपा गठबंधन में सपा के खाते में रही इस सीट से नथुनी कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैैं। कुशवाहा शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े नेता हैं। क्षेत्र में चर्चा है कि भले ही जातिगत समीकरण को देखते हुए सपा ने कुशवाहा को टिकट दिया है लेकिन इससे नाराज सपा के ही कुछ वरिष्ठ नेता, कुशवाहा के साथ नहीं लगे हैैं। कहा जा रहा है कि ऐसे नेता कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैैं। गौर करने की बात यह है कि इस सीट पर कांगे्रस-भाजपा तो जीतती रही है लेकिन अब तक सपा-बसपा को कभी यहां सफलता नहीं मिली है।


क्षेत्र में अच्छी सड़कों का नेटवर्क तो दिखता है लेकिन अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी के साथ ही क्षेत्र विकास के मामले में काफी पीछे है। कई चीनी मिलों के बंद होने से कुशीनगर के गन्ना किसान परेशान हैैं और बेरोजगारी यहां भी बड़ी समस्या बनी हुई है। कसया के डा. मृत्युंजय ओझा कहते हैैं कि अबकी भाजपा के लिए यह सीट आसान नहीं थी लेकिन उसने प्रत्याशी बदल कर जनता की नाराजगी दूर करने की कोशिश की है। शिक्षक अरविन्द त्रिपाठी कहते हैैं कि काम के मामले में राजा (आरपीएन सिंह) का जोड़ नहीं है लेकिन सुकरौली बाजार क्षेत्र में मोदी का भी कम प्रभाव नहीं है। रविशंकर का मानना है कि गठबंधन का कोई खास प्रभाव नहीं है, मुख्य लड़ाई भाजपा और कांगे्रस के बीच है।


रामकोला के वार्ड नंबर तीन की दलित बस्ती में रहने वाले जौहरी लाल, बिमफी देवी बताती हैैं कि उन्हें घर, शौचालय और गैस मिली है इसलिए उनके परिवार का वोट तो मोदी जी को ही जाएगा। परचून की दुकान खोले उमा देवी भी घर के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना से दो लाख रुपये मिलने से बेहद खुश होकर कहती हैैं कि अब उनके पास भी पक्की छत है। हालांकि, झोपड़ी में रह रहे सुदामा व अच्छेलाल इसलिए मोदी से नाराज है कि उन्हें अब तक न घर मिला है, न शौचालय और न ही गैस। टेलङ्क्षरग का काम करने वाले कालीचरन व अंबुज और जनरल मर्चेंट की दुकान खोले राजेश कुमार भी मानते हैं कि मुख्य लड़ाई तो भाजपा और कांगेस के बीच है।


पडरौना के विद्या सागर कनौजिया कहते है कि यहां भाजपा कमजोर है। होटल में काम करने वाले अभिषेक बताते हैैं कि आरपीएन अच्छे हैैं लेकिन दिक्कत यह है कि चुनाव जीतने-हारने के बाद वह जनता के बीच कम ही रहते हैैं। किसान रमेश राय भाजपा से इसलिए नाराज हैैं क्योंकि 2014 में नरेन्द्र मोदी के वादे के बावजूद अब तक पडरौना सुगर मिल नहीं चली। कसया में बैनामा लेखक राजेश्वर गिरी कहते हैैं कि चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय है लेकिन पहले की तरह यदि मुस्लिम वोट कांगे्रस के साथ रहा तो भाजपा और कांगे्रस में मुख्य लड़ाई होगी।


गठबंधन के साथ दिखे बौद्ध धर्म के अनुयायी


कुशीनगर में स्थित विश्व प्रसिद्ध भगवान बुद्ध के मुख्य स्तूप, निर्वाण मंदिर, माथा कुंअर मंदिर, रामाभार स्तूप आदि में मिले बौद्ध भिक्षु धम्म विजय, चंद्र मणि पहले-पहल तो राजनीति से दूर रहने की बात कहते हैैं लेकिन बात आगे बढ़ाने पर बताते हैैं कि मोदी सरकार अच्छा काम कर रही है लेकिन यहां बौद्ध धर्म के अनुयायी गठबंधन के साथ दिखते हैैं। बौद्ध धर्म अपनाने वाली मायावती का जिक्र करते हुए कहते हैैं कि उन्होंने सरकार में रहते यहां काम किया है इसलिए ज्यादातर वोट उन्हें ही जाने की उम्मीद है।


वोटों के बंटवारे से भाजपा को फायदा


कुशीनगर में लगभग 39 फीसद पिछड़ों के अलावा 18 फीसद एससी-एसटी और 14 फीसद मुस्लिम आबादी है। ब्राह्मण 12, बनिया पांच और क्षत्रिय पांच फीसद वोट माने जाते हैैं। अंत समय में कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन के बीच वोटों के बंटने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में सीधे तौर पर भाजपा को ही फायदा मिलेगा। पिछली बार भाजपा को जहां तकरीबन 39 फीसद वहीं कांग्रेस को 30 और सपा-बसपा को मिलाकर 26 फीसद वोट मिले थे।