यह भी नहीं रहने वाला...


एक साधु महात्मा यात्रा पर पैदल निकले हुऐ थे। रात हो जाने पर साधु एक गांव में एक व्यक्ति के दरवाजे पर पहुंचे। उस व्यक्ति ने साधु की खूब सेवा की और दूसरे दिन साधु को विदा किया। साधु ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे। साधु की बात सुनकर वह व्यक्ति हंसने लगा और बोला- अरे, महात्मा जी जो है यह भी नहीं रहने वाला। साधु उस व्यक्ति की ओर देखते रह गए और वहां से चले गए। दो वर्ष बाद साधु फिर उसी गांव से निकलते हुए उस व्यक्ति घर पहुंचे। उन्होंने देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है। जानकारी हुई कि वह व्यक्ति अब बराबर वाले गांव के जमींदार के यहां नौकरी करता है।


साधु का उस व्यक्ति से मिलने का मन हुआ तो वह उसी गांव में पहुंच गए। उस व्यक्ति ने साधु को देखा तो काफी खुश हुआ और अभाव में भी साधु का स्वागत किया। झोंपड़ी में फटी चटाई पर बैठाया। खाने के लिए सूखी रोटी दी। दूसरे दिन जाते समय साधु की आंखों में आंसू थे। साधु बोले- हे भगवान ये तूने क्या किया? वह व्यक्ति फिर हंसने लगा और बोला-महाराज आप क्यों दुखी हो समय सदा बदलता रहता है यह भी नहीं रहने वाला। साधु मन ही मन सोचने लगे, मैं तो केवल भेष से साधु  हूं, सच्चा साधु तो तू ही है, भगवान करें तू आनंद से रहे।


कुछ वर्ष बाद साधु फिर यात्रा पर निकले तो उसी गांव में पहुंचे। उन्होंने देखा कि अब वह व्यक्ति जमींदारों का जमींदार बन गया है। मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहां वह नौकरी करता था, उसके कोई संतान नहीं थी। मरते समय जमींदार अपनी सारी जायदाद उसी को दे गया।
उस व्यक्ति ने साधु की खूब सेवा की। साधु बोले कि अच्छा हुआ, बुरा जमाना गुजर गया। भगवान करे अब तू ऐसा ही बना रहे। यह सुनकर वह व्यक्ति फिर हंस पड़ा और कहने लगा महाराज, यह भी नहीं रहने वाला। साधु हर बार की तरह आशीर्वाद देते हुए चले गए।


साधु कई साल बाद फिर लौटे तो देखा कि उस व्यक्ति का महल तो है लेकिन उसपर कबूतर बैठे हैं। उस व्यक्ति का देहांत हो गया है, बेटियां अपने-अपने घर चली गईं, बूढ़ी पत्नी कौने में पड़ी है।


शिक्षा: यहां कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दुख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता। सच्चे इंसान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं। गरीब हो या अमीरी, सदा परमात्मा की पूजा करते हैं और दूसरों का भला करते हैं।