न सिर्फ भारत, बल्कि विश्व के अनेक देशों में कितने ही रूपों में पूजित भगवान शिव के पूजन की परंपरा आज भी देखी जा सकती है। शास्त्रों में शिव शंकर के एकादश ‘रुद्र'- शंभु, पिनाकी, गिरीश, स्थाणु, भर्ग, सदाशिव, शिव, हर, शर्व, कपाली और भव का उल्लेख आया है। ठीक इसी प्रकार शंकर जी की शृंगार वस्तुओं की संख्या भी ग्यारह हैं, जिसे महादेव हर पल, हर घड़ी धारण किए रहते हैं। धर्मज्ञों की राय में प्रभु के ये एकादश शृंगार में पांच जन्म से हैं, जबकि काल विशेष पर और विष ग्रहण के बाद इनमें छह की और बढ़ोतरी हुई। ये एकादश शृंगार ही सदाशिव को पूर्ण बनाते हैं।
गगा' को शंकर जी का प्रथम शृंगार माना गया है। शिव को जलधारा प्रिय है, उस पर भी गंगा की धारा तो सदाशिव को अतिप्रिय है। शिवजी के गांगेय, गंगेश्वर, गंगाधिपति, गंगेश्वरनाथ आदि नाम पुनीत गंगा को धारण करने के कारण ही हैं।
चंद्रमा' को शिवजी का मुकुट कहा गया है। विवरण मिलता है कि शिवजी के त्रिनेत्रों में एक सूर्य, एक अग्नि और एक चंद्र तत्व से निर्मित है। चंद्र देवता का एक नाम ‘सोम' है। उनके मस्तक पर शोभित ‘जटाजूट' को अष्ट अरण्य स्वरूप माना जाता है, जिसे कल्पवृक्ष के रूप में वटवृक्ष की भांति सदैव ऊर्जावान बताया जाता है। जगत् नियंता सदाशिव की ये जटाएं शक्ति की प्रतीक बताई जाती हैं, जिन्हें गंगा तृप्त करती रहती हैं।
शिवशंकर के गले के हार ‘सर्प' को प्रभु का अति प्रिय माना गया है। नागेश्वर, नागराजेश्वर, नागनाथ, नागेश आदि शैव तीर्थ नागदेवता के साथ संबंध का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। इसी प्रकार शंकर जी के गले में शोभायमान रुद्राक्ष को भी शिव शृंगार का तत्व माना जाता है, जो शिवजी के ही शारीरिक तत्व से उत्पन्न है। शिव जी के शृंगार में त्रिशूल का विशिष्ट स्थान है। त्रिशूल के तीन शूल क्रमश: सत्, रज और तम् गुण से प्रभावित भूत, भविष्य और वर्तमान का द्योतक हैं।
हम सभी जानते है कि सदाशिव के वाहन नंदी हैं, जिनकी कुल संख्या छह है। नंदी, बसहा या वृषभ का शिव सवारी होना इस तथ्य का प्रतीक है कि भोले भंडारी खेतिहर गृहस्थ हैं। शंकर जी के शृंगार में भस्म का अपना स्थान है। कहीं-कहीं श्मशान की राख विभूति को शंकर जी का परिधान बताया गया है। शंकर जी डमरू बजाते हैं। डमरू की आवाज ब्रह्मंाड के अंतर्नाद की भांति है, जिससे प्रथम ध्वनि ओंकार निकली। शंकर जी के शृंगार में चंदन आवश्यक है। किसी भी सुगंधित चंदन से शिव पूजन किया जा सकता है, पर मलयगिरि चंदन की बात ही कुछ और है। शिव जी को लाल और सफेद, दोनों चंदन परम प्रिय हैं।
भोले भंडारी के शृंगार में बेलपत्र का विशेष मान है। इसी प्रकार पुष्पों में मंदार पुष्प को शिव प्रिय कहा गया है। ऐसे शिवजी की निवास स्थली कैलाश, अद्र्धांगिनी माता पार्वती और पुत्र द्वय- कार्तिकेय व गणेश के साथ शिव बूटी भंग को भी शिव शृंगार में गिना जाता है। भोलेनाथ के एकादश रुद्र की भांति एकादश शृंगार की अपनी महत्ता है। इसे पर्व-त्योहार, खासकर शिवरात्रि व सावन में आसानी से देख सकते हैं।