सरलता है भक्ति का प्रथम मार्ग


एक आलसी लेकिन भोलाभाला युवक था आनंद। दिन भर कोई काम नहीं करता बस खाता और सोता रहता। घरवालों ने उसे निकाल दिया और कुछ काम करने को कहा। आनंद घर से निकलकर यूं ही भटकते हुए एक आश्रम में पहुंच गया। वहां उसने देखा कि एक गुरु जी हैं, उनके शिष्य कोई काम नहीं करते बस मंदिर में पूजा करते हैं। उसने सोचा यह उसके लिए अच्छी जगह है, कोई काम-धाम नहीं बस पूजा ही तो करनी है। उसने गुरु जी से आज्ञा ली और वहां रहने लगा।


आनंद मजे से आश्रम में रह रहा था, न कोई काम और न कोई धाम बस खाओ और प्रभु की भक्ति में भजन गाओ। धीरे-धीरे महीना बीत गया और एकादशी आ गई। आनंद ने देखा कि रसोई में खाना तैयार नहीं था। उसने गुरुजी से पूछा तो उन्होंने बताया कि आश्रम में सभी का एकादशी का उपवास है। आनंद बोला, गुरु जी बिना भोजन वह तो मर जाएगा।


इस पर गुरु जी बोले, उपवास रखना तो मन पर निर्भर करता है कोई अनिवार्यता नहीं है। इसलिए वह खुद ही अपना भोजन बनाए और खाए लेकिन यह काम उसको नदी के पार जाकर करना होगा। आनंद ने लकड़ी, खाना बनाने का सामान आदि लिया और नदी के पार चल दिया। इसी बीच गुरु जी बोले जब तुम खाना बना लो तो पहले प्रभु राम जी को भोग जरूर लगा लेना।


आनंद नेजैसे-तैसे खाना बनाया और खाने के लिए बैठा। इसी बीच उसे याद आया कि गुरु जी ने भगवान को भोग लगाने को भी कहा था। वह भजन गाने लगा लेकिन वह भोला मानस जानता नहीं था कि प्रभु साक्षात नहीं आएंगे नहीं लेकिन उसके लिए गरु जी का आदेश मनना भी जरूरी था। काफी देर बाद वह बोला कि देखो प्रभु राम जी, मैं समझ गया कि आप क्यों नहीं आ रहे  क्योंकि मैंने रूखा-सूखा खाना बनाया है और आपको मिष्ठान खाने की आदत है। उसने कहा एक बात और बता दूं भगवान आज आश्रम में भी कुछ नहीं बना है, इसलिए खाना हो तो यह भोग ही खालो।


श्रीराम अपने भक्त की सरलता पर मुस्कुराए और माता सीता के साथ प्रकट हो गए। आनंद असमंजस में पड़ गया कि गुरुजी ने तो राम जी की बात कही थी लेकिन यहां तो सीता माता भी आई हैं। आनंद बोला प्रभु मैंने भोजन तो दो लोगों का ही बनाया था लेकिन आपको देखकर बहुत अच्छा लगा।


अगली एकादशी तक भोला मानस सब भूल गया। उसे लगा प्रभु ऐसे ही आते होंगे और प्रसाद ग्रहण करते होंगे। फिर एकादशी आई। गुरुजी से कहा, मैं चला अपना खाना बनाने पर गुरुजी इस बार थोड़ा ज्यादा अनाज लगेगा, वहां दो लोग आते हैं। गुरुजी मुस्कुराए और सोचा मेहनत करी थी तो हो सकता है कि ज्यादा भूख लगी हो, इसलिए बहाने बना रहा है।


गुरु जी ने ज्यादा अन्न ले जाने की अनुमति दे दी। आनंद ने इस बार तीन लोगों का खाना बनाया और प्रभु को याद किया। इस बार भगवान राम, लक्ष्मण और सीता माता तीनों पहुंच गए। आनंद ने फिर प्रभु को खाना खिलाया और खुद भूखा रहा। अनजाने में उसका भी एकादशी का उपवास हो गया।


अगली एकादशी पर उसने पूछा, गुरुजी, ये आपके प्रभु राम जी, अकेले क्यों नहीं आते, हर बार कितने सारे लोग ले आते हैं? इस बार अनाज थोड़ा और ज्यादा देना। इस बार गुरुजी को लगा, कहीं यह अनाज बेचता तो नहीं है, सो उन्होंने छुपकर आनंद को देखने की ठानी।


उधर, आनंद ने सोचा, इस बार खाना पहले नहीं बनाऊंगा, पता नहीं कितने लोग आ जाएं। पहले बुला लेता हूं फिर बनाता हूं। भोले आनंद ने प्रभु को याद किया तो भगवान अपने दरबार के साथ प्रकट हो गए। उन्होंने आनंद से कहा, यह क्या इस बार प्रसाद तो तैयार ही नहीं है। भक्त ठहरा भोला भाला, बोला-मैंने सोचा कि पता नहीं कितने लोग आएंगे तो पहले बनाने से क्या फायदा। ऐसा करो आप खुद ही बना लो और मुझे भी खिला दो।


शिष्य की सरलता देख भगवान राम मुस्कुराए और बोले भक्त की इच्छा है पूरी तो करनी पड़ेगी। चलो लग जाओ काम से। लक्ष्मण जी ने लकड़ी उठाई, माता सीता आटा सानने लगीं। भक्त एक तरफ बैठकर देखता रहा। यह देख ऋषि-मुनि, यक्ष, गंधर्व प्रसाद लेने आने लगे। इधर, गुरुजी ने देखा खाना तो बना नहीं भक्त एक कोने में बैठा है।


वे वहां पहुंचे और पूछा बेटा क्या बात है खाना क्यों नहीं बनाया? आनंद बोला, अच्छा किया गुरुजी आप आ गए देखिए कितने लोग आते हैं प्रभु के साथ। गुरुजी बोले, मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा तुम्हारे और अनाज के सिवा। यह सुनकर आनंद ने माथा पकड़ लिया और भगवान राम से बोला से प्रभु आप मेरे से हर बार इतनी मेहनत करवाते हैं, मुझे भूखा भी रखते हैं और अब गुरुजी को दिख भी नहीं रहे।


यह सुनकर प्रभु बोले : मैं उन्हें नहीं दिख सकता। इस पर शिष्य बोला कि वे तो मेरे गुरुजी है, बड़े पंडित हैं, ज्ञानी हैं, विद्वान हैं उन्हें तो बहुत कुछ आता है उनको क्यों नहीं दिखते आप?


प्रभु बोले, माना कि तुम्हारे गुरुजी को सब आता है पर वे तुम्हारी तरह सरल नहीं हैं, इसलिए उनको नहीं दिख सकता। आनंद ने गुरुजी से कहा, गुरुजी प्रभु कह रहे हैं आप सरल नहीं है इसलिए आपको नहीं दिखेंगे। गुरुजी रोने लगे और कहा, मैंने सबकुछ पाया लेकिन सरलता से नहीं पा सका जबकि प्रभु तो मन की सरलता से ही मिलते हैं। यह सुनकर प्रभु राम प्रकट हो गए और गुरुजी को भी दर्शन दिए।