वैशाख माह में शुक्ल पक्ष नवमी को जानकी नवमी या सीता जयंती के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था। जनक दुलारी होने के कारण माता सीता को जानकी, मिथिलावासी होने के कारण मिथिलेश कुमारी भी कहा जाता है। माता सीता, भूमिजा भी कहलाई, क्योंकि राजा जनक ने उन्हें भूमि से प्राप्त किया था। माता सीता को प्रकृति का स्वरूप कहा गया है तथा योगमाया रूप में स्थापित किया गया है।
जानकी नवमी पर माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से 16 तरह के दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत में राजा जनक और माता सुनयना की पूजा के साथ पृथ्वी मां की भी पूजा करनी चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्य सुख एवं संतान सुख की प्राप्ति होती है। माता सीता का जीवन एक पुत्री, पुत्रवधू, पत्नी और मां के आदर्श रूप में सभी के लिए पूजनीय रहा है। माता जानकी का व्रत करने से त्याग, शील, ममता और समर्पण जैसे गुण आते हैं। इस दिन जानकी स्तोत्र, श्रीरामचरितमानस का पाठ करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत में आठ महिलाओं को सौभाग्य की वस्तुएं भेंट करें। लाल वस्त्र का दान अतिशुभ माना जाता है।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।