शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है, साथ ही पितृ शत्रु भी कहे जाते हैं। शनि उतना अशुभ और मारक नहीं, जितना उसे माना जाता है। शनि शत्रु नहीं मित्र है। शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। अनुराधा नक्षत्र के स्वामी शनि हैं।
ज्योतिष के अनुसार सभी ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते रहते हैं। ऐसे में शनि ग्रह जब लग्न से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपना समय चक्र पूरा करता है। शनि की मंथर गति से चलने के कारण यह एक राशि में लगभग ढाई वर्ष यात्रा करता है।
इस प्रकार एक वर्तमान के पहले, एक पिछले तथा एक अगले ग्रह पर प्रभाव डालते हुए शनि तीन गुणा, अर्थात साढ़े सात वर्ष की अवधि का काल साढ़े सात वर्ष का होता है। शनि की यही दशा साढ़े साती कहलाती है। शनि अमावस्या को शनि से संबंधित उपाय करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है।
इन ग्रहों पर चल रही शनि की साढ़े साती
शनि गोचर के बाद वृश्चिक राशि की साढ़े साती समाप्त हो गई है जबकि कुंभ राशि पर शनि की साढ़े साती चल रही है। मकर राशि पर साढ़े साती का दूसरा चरण जनवरी में शुरू हुआ है, वहीं धनु राशि पर साढ़े साती का अंतिम चरण प्रारंभ हुआ। अब शनि अगले ढाई साल इसी राशि में रहेंगे। वृष और कन्या राशि की ढय्या जहां समाप्त हो चुकी है, वहीं मिथुन और तुला राशि की ढय्या चल रही है।
विशेष उपाय से मिलता है लाभ
साढ़ेसाती, ढैया न भी हो तब भी शनि जातक की कुंडली में अपनी बैठकी के अनुसार राशि परिवर्तित होते ही अपना असर दिखाना शुरू कर देते हैं। इससे बचने के लिए कुछ विशेष उपाय करने आवश्यक हैं। अषाढ़ मास में शनि की साढ़ेसाती की पूजा कराने से जातक को लाभ पहुंचता है।
इसके अलावा जिन जातकों पर शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैया चल रही है वे जातक शनि अमावस्या पर शनिदेव की साधना कर उनके प्रकोप से बच सकते हैं।
शनि के प्रकोप से बचने के लिये शनि अमावस्या को शनिदेव की साधना करनी चाहिये। शनिदेव की शांति के लिये शनि सत्वराज, शनि स्त्रोतम् या शनि अष्टक का पाठ करें।शनि का पूजन तथा तेल से अभिषेक करने से शनि की साढ़े साती, महादशा का संकट और शनि आपदायों से मुक्ति मिलती है। शनि देव को तेल से अभिषेक करें तथा काला कपड़ा, काले तिल, काली उड़द आदि अर्पित करने शनि देव प्रसन्न होते हैं।
इन मंत्रों का जाप करें
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
ॐ शं शनैश्चराय नम: