क्यों मनाई जाती है अपरा एकादशी, जानें-इसका धार्मिक महत्व

ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने से व्रती को न केवल स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है बल्कि मोक्ष भी मिलता है। अतः इस व्रत का विशेष महत्व है। 



18 मई को अपरा एकादशी है। इस दिन भगवान श्री नारायण हरि विष्णु जी की पूजा-उपासना की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने से व्रती को न केवल स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है, बल्कि मोक्ष भी मिलता है। अतः इस व्रत का विशेष महत्व है। आइए, इस व्रत की कथा एवं महत्व को जानते हैं-


अपरा एकादशी की कथा


पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में महीध्वज नामक महान प्रतापी और धर्मात्मा राजा रहा करता था। उनके छोटे भाई का नाम वज्रध्वज था, जो कि आसुरी प्रवृति का था। वह महीध्वज के पुण्यात्मा स्वभाव से चिढ़ा रहता था और उनसे द्वेष की भावना रखने लगा था। एक दिन वज्रध्वज ने अवसर पाकर अपने बड़े भाई महीध्वज का वध कर उसके शव को पास के जंगल में पीपल वृक्ष के नीचे छिपा दिया।


मरणोपरांत महीध्वज की आत्मा उस वृक्ष पर ही रहने लगी और आते-जाते राहगीरों को इससे खूब परेशान होने लगी। एक दिन उस रास्ते से एक ऋषि गुजर रहे थे तो महीध्वज ने उन्हें परेशान करने की कोशिश की। यह देख ऋषि ने महीध्वज के प्रेतात्मा से कहा-हे राजन आपको यह शोभा नहीं देता है कि आप पुण्यात्मा होकर राहगीरों को परेशान करें।


यह सुन महीध्वज ने करुण भाव में कहा- हे ऋषिवर आप ही कोई युक्ति सुझाएं, ताकि मैं इस प्रेत योनि से मुक्त हो जाऊं। तब ऋषि ने कहा-हे राजन आप चिंतित न हों। मैं स्वयं आपके प्रेत योनि से मुक्ति के लिए अपरा एकादशी का व्रत करूंगा। इस व्रत को करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी। इसके बाद ऋषि ने अपरा एकादशी के दिन विधिवत पूजा व्रत की और द्वादशी के दिन पारण कर व्रत फल राजा महीध्वज को दे दिया। इस व्रत फल से कालांतर में महीध्वज को मोक्ष की प्राप्ति हुई। उस समय से अपरा एकादशी मनाई जाती है।


अपरा एकादशी महत्व


इस दिन मंदिर एवं मठों को विशेष पूजा आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान विष्णु जी के शालिग्राम रूप की पूजा-आराधना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जिस व्रती को स्वर्ग की अभिलाषा होती है, उसे अपरा एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा-उपासना करने से व्यक्ति के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं।