प्रयागराज। जीवन के लिए प्रियजनों से दूरी बनाने को विवश करने वाले सूक्ष्म विषाणु नोवेल कोरोना वायरस ने मृत्यु के बाद भी सैकड़ों पुण्यात्माओं की तीर्थराज में अंतिम क्रिया के सपने को तोड़ दिया है। जिलों की सीमायें सील होने के कारण संगम नगरी के घाटों पर होने वाली अंत्येष्टि में 75 फीसदी की कमी आई है।
तीर्थस्थल प्रयागराज में गंगा घाट के दारागंज और रसूलाबाद दो मुख्य श्मशान घाट पर लॉकडाउन से पहले प्रतिदिन करीब 7०-8० शव अंतिम संस्कार के लिए लाए जाते थे जो अब घटकर 1० से 15 ही रह गए है। यहां प्रयागराज के अलावा बड़ी संख्या में आस-पास के जिलों प्रतापगढ़, बादशाहपुर, कौशांबी आदि के अलावा पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के रींवा और सतना और इसके अन्य जिलों से चार -पांच शव प्रतिदिन लाये जाते थे।
कोरोना वायरस का असर शवों के अंतिम यात्रा में भी दिख रहा है। पहले जहां शवों को कंधा देना लोग पुण्य का काम मानते थे,लेकिन अब परिवार के कुछ लोग ही शवों को कंधा दे रहे हैं। इनमे कई ऐसे भी है जिनके अपने शहर के बाहर है और रिश्तेदार अंतिम क्रिया में भाग लेने को कतरा रहे है। ऐसे शवों की अंतिम क्रिया के लिये जिला प्रशासन को यह जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है।
रसूलाबाद घाट पर अंतिम संस्कार करने वाले लाल चंद ने बताया कि लॉकडाउन और पुलिस की सख्ती के कारण इस दौरान ऐसे बुजुर्ग भी थे, जिनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो सकी है। उनके निधन के बाद स्वजन उनके पार्थिव शरीर लेकर गंगा घाट नहीं आ सके। विवशता में उन्हें गांव के आसपास नदी तट पर अंतिम संस्कार करना पड़ा और फिर अस्थियों को ही गंगा में विसर्जित किया।
उन्होंने बताया कि लॉकडाउन से पहले दिन भर में करीब पांच से 10 शव यहां अंतिम संस्कार के लिए लाए जाते थे लेकिन अब दो चार आ जाए तो बहुत बड़ी बात है। चहल पहल रहने वाले मरघट पर अब सन्नाटा पसरा रहता है। अब परिवार का खचार् निकालना मुश्किल हो गया है।दारागंज में मोक्षदायिनी गंगा तट पर रंजीत लकड़ी वाले ने बताया कि लॉकडाउन से पहले घाट पर 5०-6० शव प्रयागराज के अलावा नजदीकी जिलों कौशांबी, प्रतापगढ़ और बादशाहपुर से आठ से 10 शव ही पहुंच रहे हैं। इसके अलावा पड़ोसी राज्य मघ्य प्रदेश के रीवां और सतना के जिलों से भी दो-चार शव संस्कार के लिए लाए जाते थे, अब बन्द है। लोग अब अपने आपसपास के नदियों या कहीं अन्यत्र दाह संस्कार कर रहे हैं।