भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में नेपाल के कपिलवस्तु स्थित लुम्बिनी नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था और माता का नाम माया देवी था।
वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है। इस साल 7 मई को बुद्ध जयंती है, जिसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह पर्व बौद्ध और हिन्दू धर्म के सबसे बड़े त्योहारों में एक है। भगवान बुद्ध को विष्णु का 9वां अवतार माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ बुद्ध की पूजा करने का भी विधान है।
बुद्ध जयंती का इतिहास
भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में नेपाल के कपिलवस्तु स्थित लुम्बिनी नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था, जो कि शाक्य गण के प्रमुख थे और माता का नाम माया देवी था। जब सिद्धार्थ ( बुद्ध के बचपन का नाम) महज सात दिन के थे। उसी समय इनकी माता की मृत्यु हो गई। इसके बाद इनका लालन-पालन इनकी सौतेली मां प्रजापति गौतमी ने किया था।
भगवान बुद्ध ने पहला उपदेश सारनाथ में दिया था
बुद्ध महज 29 साल की उम्र में संन्यासी बन गए और बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे 6 वर्ष तक कठिन तपस्या की। इसके बाद उन्हें वैशाख पूर्णिमा के दिन सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिस पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, उसे बोधि वृक्ष कहा जाता है। तत्कालीन समय में यह स्थान बिहार राज्य के गया जिले में स्थित है। भगवान बुद्ध ने पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। चीरकाल में भगवान बुद्ध 483 ईसा पूर्व में वैशाख पूर्णिमा के दिन पंचतत्व में विलीन हो गए। इस दिन को परिनिर्वाण दिवस कहा जाता है।
बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
यह पर्व बुद्ध के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन लोग अपने घरों में दीपक प्रज्ज्वलित कर उत्सव मनाते हैं। मंदिरों और मठों में भगवान बुद्ध की जीवन कथा और उपदेशों को सुनाया जाता है। चूंकि यह पर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, इसलिए इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान भी करते हैं। हालांकि, लॉकडाउन के चलते इस साल लोग अपने घरों में ही बुद्ध पूर्णिमा मना रहे हैं।