आसमान में टूूटकर बिखरा धूमकेतु एटलस और जमीं पर एरीज के वैज्ञानिकों की उम्मीदें

अंतरिक्ष के विज्ञान को समझने और उसके रहस्यों को लोगों के सामने लाने में आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) नैनीताल के वैज्ञानिकाें की उम्मीदों को झटका लगा है।



नैनीताल। अंतरिक्ष के विज्ञान को समझने और उसके रहस्यों को लोगों के सामने लाने में आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) नैनीताल के वैज्ञानिकाें की उम्मीदों को झटका लगा है। कई महीने से उनकी आंखों का तारा बना धूमकेतु एटलस का टूटकर बिखरना उन्हें न‍िराश कर गया। पिछले साल ही खोजे गए इस धूमकेतु को लेकर उनमें बहुत सारी जिज्ञासाएं थीं, जिन पर वे विगत कई महीनों से शोध भी कर रहे थे। आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के खगोल वैज्ञानिक डाॅ शशिभूषण पांडे ने बताया कि एटलस 23 मई को सर्वाधिक चमकता हुआ नजर आने वाले था। एरीज केे खगोलविद इस पर शोध कर रहे थे। दुखद है कि अपनी आभा दिखाने से पहले ही यह धूमकेतु टूटकर बिखर गया। एटलेस धूमकेतु के टूटे हुए हिस्से सूर्य की आेर बढ़ रहे हैं।  


तो वर्ष का सबसे अधिक चमकने वाला धूमकेतु होता 


भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बंगलुरू के सेनि खगोल वैज्ञानिक प्रो आरसी कपूर ने अनुसार पिछले साल ही इसकी खोज हुई थी। जैसे जैसे यह सूर्य की ओर बढ़ रहा  था, इसकी चमक बढ़ने लगी थी। इसका जरा भी एहसास नही था कि यह वह इस कदर टूटकर बिखर जाएगा। माना जा रहा था यह धूमकेतु इस वर्ष का सबसे अधिक चमकने वाला धूमकेतु साबित होगा। जिस कारण वैज्ञानिक बेसव्री से इसके करीब आने का इंतजार कर रहे थे।एटलस का दूसरा नाम सी 2019 वाई4 दिया गया था। नासा की हब्बल टेलीस्कोप ने इसके टूटे हुए हिस्सों की तस्वीरें ली है। इसके टूकड़े अब सूर्य की ओर ओर आगे बढ़ रहे हैं।


अंजान दिशा से दूसरा धूमकेतु आ रहा करीब


एटलस के बाद एक दूसरा धूमकेतु स्वान सूर्य की ओर आगे बढने लगा है। सी 2020 एफ 8 यानी स्वान की पिछले महीने खोज हुई थी। यह धूमकेतु हमारे सौरमंडल से बाहर अंजान दिशा आया धूमकेतु है। इसकी चमक 5.6 मैग्निट्यूट है। 12 मई को पृथ्वी से करीब से होकर गुजरेगा। इसके बाद 27 मई को सूर्य का चक्कर लगाकर लगाकर लौट जाएगा। जैसे जैसे यह सूर्य के करीब पहुंचेगा, इसकी पूंछ लंबी होनी शुरू हो जाएगी और चमक भी बढऩी शुरू हो जाएगी।


सौरमंडल का अभिन्न अंग हैं धूमकेतु


धूमकेतु हमारे सौरमंडल के अभिन्न अंग हैं, जो सौरमंडल के अंतिम छोर में रहते हैं। ग्रहों की तरह यह भी सूर्य का चक्कर लगाते हैं। सूर्य के नजदीक पहुंचने पर इनकी पूंछ निकलनी शुरू हो जाती है और चमक भी बढऩे लगती है। तब इन्हें कोरी आंखो से देखा जा सकता है। इनमें काफी मात्रा में बर्फ होती है। सूर्य की किरणें पढऩे पर ये चमकने लगते हैं।


क्या धूमकेतु लाए पूथ्वी पर जल


माना जाता है कि पृथ्वी पर भारी मात्रा में पानी लाने वाले धूमकेतु ही रहे होंगे। पृथ्वी के निर्माण के बाद कोई धूमकेतु धरती से टकराया होगा। धूमकेतु की बर्फ पिघल गई होगी। जिस कारण पृथ्वी में भारी मात्रा में जल पहुंचा होगा।