यूटेरिन फाइब्रॉयड यह स्त्रियों की सेहत से जुड़ी ऐसी समस्या है जिसके लक्षणों को मामूली समझकर स्त्रियां अनदेखा कर देती हैं। क्यों होता है ऐसा और क्या है इसका उपचार जानते हैं यहां।
पेट के निचले हिस्से या कमर में भारीपन, पीरियड्स के दौरान ऐंठन भरा तेज़ दर्द, कई दिनों तक हेवी ब्लीडिंग की समस्या से परेशान हैं तो इसे बिल्कुल भी हल्के में न लें जैसा की ज्यादातर स्त्रियां करती हैं। इन सारी समस्याओं की आखिर क्या वजह है और क्या है इसका बचाव और उपचार, जानेंगे एक्सपर्ट के साथ।
1. किस शारीरिक दशा को यूटेरिन फाइब्रॉयड कहा जाता है?
दरअसल ये गर्भाशय की भीतरी या बाहरी दीवारों में पनपने वाली गांठें हैं। सामान्यत: हर स्त्री के गर्भाशय में कुछ ऐसी गांठें मौज़ूद हो सकती हैं पर इससे उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती और इसके कोई लक्षण भी नज़र नहीं आते, जिसके आधार पर इसकी जांच कराई जा सके। अधिकतर मामलों में फाइब्रॉयड डिलीवरी के दौरान नज़र आता है। रिप्रोडक्टिव एज ग्रुप (25-40 वर्ष) की स्त्रियों में फाइब्रॉयड की आशंका सबसे अधिक देखने को मिलती है।
2. यूट्रस के किस हिस्से में फाइब्रॉयड होने की आशंका रहती है?
यह यूट्रस के किसी भी हिस्से में हो सकता है। यह जहां भी स्थित होता है, उसी अवस्था के आधार पर इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जो इस प्रकार है :
सबसेरोसल: यह फाइब्रॉयड यूट्रस के बाहरी हिस्से में स्थित होता है। इसकी वजह से मासिक चक्र पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन कमर में दर्द और यूरिन का अधिक दबाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
सबम्यूकोसल: यह यूट्रस के भीतर जिस हिस्से में पनपता है, उसे कैविटी एरिया कहा जाता है और कंसीव करने के बाद यहीं भ्रूण का विकास होता है। अत: इसकी वजह से प्रेग्नेंसी में भी परेशानी हो सकती है।
इंट्राम्यूरल: यह गांठ यूट्रस की मांसपेशियों की दीवारों में पाया जाता है।
पेड्यून्कुलेटेड: गर्भाशय के बाहरी हिस्से में पाया जाने वाला यह फाइब्रॉयड देखने में मशरूम के आकार का होता है, यह सर्विक्स और आसपास के हिस्सों में तेज़ी से फैलता है।
3. किन लक्षणों के आधार पर इस समस्या की पहचान होती है?
पेट के निचले हिस्से या कमर में भारीपन, पीरियड्स के दौरान ऐंठन भरा तेज़ दर्द, कई दिनों तक हेवी ब्लीडिंग, पीरियड्स खत्म होने के बाद बीच में अचानक कभी भी तेज़ या हलकी ब्लीडिंग की शुरुआत, सहवास में दर्द और बार-बार यूरिन का प्रेशर महसूस होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
4. इस समस्या के प्रमुख कारणों के बारे में बताएं।
इस समस्या के सही कारणों को अभी तक पहचाना नहीं जा सका है। फिर भी ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि स्त्री के शरीर में मौज़ूद सेक्स हॉर्मोन प्रोजेस्टरॉन और एस्ट्रोजेन की अधिकता से उसे यह समस्या हो सकती है। इसी वजह से युवावस्था में इसकी आशंका अधिक होती है। चूंकि मेनोपॉज़ के बाद स्त्री के शरीर में इन दोनों हॉर्मोन्स की मात्रा घट जाती है, इसी वजह से मिडिलएज स्त्रियों में फाइब्रॉयड का आकार सिकुड़कर अपने आप छोटा होने लगता है और कुछ समय के बाद खत्म हो जाता है। आनुवंशिकता की वजह से भी ऐसी समस्या हो सकती है। इसलिए अगर इस बीमारी की फैमिली हिस्ट्री रही हो तो विशेष रूप से सजगता बरतनी चाहिए।
5. इसकी वजह से स्त्री की सेहत को क्या नुकसान हो सकता है?
फाइब्रॉयड कैंसर रहित गांठें होती हैं। आमतौर पर इससे स्त्री की सेहत को ज़्यादा नुकसान नहीं होता लेकिन इसकी वजह से प्रेग्नेंसी में स्त्री को कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। मसलन, मिसकैरेज, प्रीमेच्योर डिलीवरी, गर्भस्थ शिशु की पोजि़शन में गड़बड़ी, जिससे नॉर्मल डिलीवरी संभव नहीं होती और सर्जरी के दौरान ज़्यादा ब्लीडिंग जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। इसकी वजह से कुछ स्त्रियों को एनीमिया भी हो जाता है। इसकी वजह से किसी भी स्त्री की सामान्य दिनचर्या प्रभावित हो सकती है।
6. फाइब्रॉयड की जांच और उपचार के लिए क्या तरीके अपनाए जाते हैं?
अल्ट्रासाउंड, एमआरआई और सीटीस्कैन के ज़रिये इस इन गांठों की पहचान की जाती है। फिर इनके आकार और स्थिति के आधार पर इनका उपचार किया जाता है। अगर इनकी वजह से मरीज़ को हेवी ब्लीडिंग या दर्द जैसी समस्या न हो तो इनकी सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती। मेनोपॉज़ के बाद धीरे-धीरे इनका आकर सिकुड़ कर छोटा हो है, लेकिन जब हेवी ब्लीडिंग या पेल्विक एरिया में तेज़ दर्द जैसे लक्षण नज़र आएं तो हेस्ट्रोकॉमी, मेयोमेक्टोमी, हीट्रोस्कोपी जैसी तकनीकों से इसकी सर्जरी की जाती है। अगर मरीज़ की उम्र ज्य़ादा हो तो लेप्रोस्कोपी या ओपन सर्जरी द्वारा यूट्रस रिमूवल भी किया जा सकता है, लेकिन यह मरीज़ शारीरिक अवस्था को देखने के बाद ही तय किया जाता है कि वास्तव में उसे किस तरह के उपचार की ज़रूरत है।
7. अगर किसी स्त्री को इसके उपचार के लिए सर्जरी करवानी पड़े तो उसके बाद उसे किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
फाइब्रॉयड की गांठें दोबारा पनप सकती हैं। ऐसी स्थिति में हर छह महीने के अंतराल पर यूट्रस का अल्ट्रासाउंड ज़रूर करवा लेना चाहिए। सर्जरी के बाद छह सप्ताह तक शारीरिक संबंधों से दूर रहने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा दो-तीन महीने तक भारी सामान न उठाएं। अपनी डाइट में हरी पत्तेदार सब्जि़यों के अलावा सेब,अनार और खजूर जैसे आयरन युक्त फलों को शामिल करें। डॉक्टर के सभी निर्देशों का पालन करते हुए नियमित गाइनी चेकअप कराना न भूलें। अंत में, इस बीमारी का उपचार संभव है और इसके बाद कोई भी स्त्री स्वस्थ और सक्रिय दिनचर्या अपना सकती है।