भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में सबसे शुभ व्रत माना जाता है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत की पूजा में शामिल होने के लिए सभी देवी-देवता पृथ्वी पर आते हैं। सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय जब अपने-अपने अक्ष पर सूर्य व चंद्रमा एक क्षैतिज रेखा में होते हैं तब उस समय को प्रदोष काल कहा जाता है। इस व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार चंद्र को क्षय रोग था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन: जीवन प्रदान किया।
प्रदोष व्रत के प्रभाव से व्रती का भाग्य जागृत होता है। इस व्रत का प्रभाव मन और शरीर दोनों पर पड़ता है। प्रदोष व्रत रखने वालों का जीवन कभी संकट से नहीं घिरता है। धन और समृद्धि बनी रहती है। इस व्रत में भगवान शिव की आराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है। सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण कर भगवान शिव की उपासना की जाती है। आराधना के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है। एकादशी और प्रदोष दोनों तिथियां चंद्र से संबंधित हैं। जो भी इन दोनों में से एक या दोनों तिथियों पर व्रत रखकर फलाहार का सेवन करना है उसके शरीर में चंद्र तत्व में सुधार होता है।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।