भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम आज भी मंदरांचल पर्वत पर तपस्या में हैं। परशुराम जी का जन्म पुर्नवसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता। मान्यता है कि आज भी भगवान परशुराम मंदरांचल पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं। भगवान परशुराम ऋषि ऋचीक के पौत्र और जमदग्नि के पुत्र हैं। इनकी माता का नाम रेणुका था।
परशुराम भगवान शंकर के परम भक्त हैं। भगवान शंकर ने ही परशुराम जी को एक अमोघ अस्त्र 'परशु' प्रदान किया था। पृथ्वी को निक्षत्रिय करने के बाद परशुराम ने जब कुरुक्षेत्र में पिता की अन्त्येष्टि की तब वहां पितृगणों ने इन्हें आशीर्वाद दिया। बाद में उन्हीं की आज्ञा से भगवान परशुराम ने सम्पूर्ण पृथ्वी प्रजापति कश्यप जी को दान कर दी और स्वयं मंदरांचल पर्वत पर तपस्या करने चले गये।
माता-पिता के हैं अनेक मंदिर
पौराणिक मान्यता है कि भगवान परशुराम आज भी मंदरांचल पर्वत पर तपस्यारत हैं। परशुराम ने अपनी प्रभुता व श्रेष्ठवीरता की अमिट छाप छोड़ी, शैव दर्शन में उनका अद्भुत उल्लेख है। भारतवर्ष में अनेक स्थानों पर भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि जी के आश्रम हैं। इतना ही माता रेणुका जी के भी मंदिर हैं।
सीता स्वयंर में पर्वत से जनकपुर पहुंच गए थे परशुराम
सीता स्वयंवर में श्रीराम द्वारा शिव धनुष भंग किए जाने पर वह मंदरांचल पर्वत से शीघ्रतापूर्वक जनकपुर पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्हें भगवान श्रीराम के दर्शन हुए और इनका तेज भगवान श्रीराम में प्रविष्ट हो गया। इसके बाद भगवान परशुराम अपना वैष्णव धनु राम को देकर पुनः तपस्या के लिए पर्वत पर लौट गए
गणेश जी को भी करना पड़ा क्रोध का सामना
मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम के क्रोध का सामना गणेश जी को भी करना पड़ा था। दरअसल उन्होंने परशुराम जी को शिव दर्शन से रोक दिया था। क्रोधित परशुराम जी ने उनपर अपने परशु से प्रहार कर दिया, जिसमें गणेश जी का एक दांत नष्ट हो गया। इसी के बाद से गणेश जी एकदंत कहलाए। बाद में भगवान परशुराम ने गणेश जी को आशीर्वाद भी दिया।