हरियाणा के बाद दिल्ली में भी BJP-SAD में गठबंधन मुश्किल

अब तक मिली जानकारी के मुताबिक दिल्ली के कई नेता खासकर सिख अकालियों से गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं।



नई दिल्ली । दिल्ली विधानसभा चुनाव-2020 में भाजपा अकेले उतरेगी या फिर अपने पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (शिअद बादल) के साथ, इसे लेकर अबतक कोई फैसला नहीं हुआ है। दिल्ली के कई नेता खासकर सिख अकालियों से गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं।


बुधवार को इसे लेकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के साथ अकाली नेताओं की बैठक होने की संभावना है। पंजाब के साथ ही दिल्ली में भी दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ती रही हैं। अबतक दिल्ली विधानसभा चुनावों में शिअद बादल के हिस्से में चार सीटें आती थीं, लेकिन इस बार पार्टी छह से सात सीटों पर दावा ठोक रही है। वहीं, दूसरी ओर दिल्ली सिख प्रकोष्ठ सहित कई नेता अकाली को साथ लिए बगैर चुनाव मैदान में उतरने के पक्ष में हैं। प्रदेश चुनाव समिति की बैठक में भी कुछ नेताओं ने गठबंधन का विरोध किया था।


दरअसल, कई मुद्दों पर दिल्ली में भी भाजपा व अकाली नेताओं के बीच खुलकर मतभेद सामने आ चुके हैं। लगभग दो वर्ष पहले दिल्ली में सिख संगत के कार्यक्रम का भी अकालियों ने विरोध किया था। इसके साथ ही महाराष्ट्र की पूर्व भाजपा सरकार पर गुरुद्वारा प्रबंधन में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते हुए अकाली नेताओं ने मोर्चा खोल दिया था।


दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा और भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री आरपी सिंह भी एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर चुके हैं। हरियाणा में भी दोनों पार्टियों का गठबंधन नहीं हो सका था।


भाजपा के खिलाफ इंडियन नेशनल लोकदल के साथ मिलकर अकाली चुनाव लड़े थे। चुनाव प्रचार में भाजपा पर तीखे प्रहार भी किए थे। इसके साथ ही नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भी अकाली नेताओं की राय भाजपा से अलग है। इन वजहों से दिल्ली में गठबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।


भाजपा नेताओं का कहना है कि राजधानी दिल्ली में शिअद बादल अंतर्कलह से जूझ रहा है। डीएसजीपीसी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने अकाली छोड़कर नई पार्टी बना ली है। इससे पार्टी की ताकत पहले जैसी नहीं रही है। इस स्थिति में उसे चार सीटें देना सही नहीं है। भाजपा के एक वरिष्ठ सिख नेता का कहना है कि यदि पार्टी अकाली दल से समझौता करती भी है तो उन लोगों को टिकट नहीं मिलना चाहिए, जिनपर खालिस्तान के समर्थन में बात करने के आरोप लगते रहे हैं।


दूसरी ओर, अकाली नेता दूसरी बार डीएसजीपीसी चुनाव जीतने और राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में जीत हासिल करने का हवाला देकर छह सीटें मांग रहे हैं। शिअद बादल को पिछले चुनावों में राजौरी गार्डन, कालकाजी और हरिनगर सीट मिली थी। इस चुनाव में वह इन सीटों के साथ ही मोती नगर और रोहतास नगर सीट पर भी दावा ठोक रहा है। अब सबकी नजरें भाजपा व अकाली शीर्ष नेतृत्व के बीच होने वाली बैठक पर टिकी हुई है।